पांडवों को नहीं देना चाहते थे भगवान शिव दर्शन, जानें क्या है केदारनाथ मंदिर का महत्व

उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में सम्मलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने करवाया था। यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन माना जाता है। केदारनाथ धाम की पूरे संसार में महिमा मानी जाती है। मंदिर वास्तु शिल्प केदारनाथ मंदिर का प्रवेश द्वार 6 फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों तरफ पथ है। मंदिर के बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रुप में विराजमान हैं।

केदारनाथ मंदिर के निर्माण का प्रमाणिक उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार माना जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उनकी प्रार्थना के अनुसार ज्योतिर्लिंग के रुप में सदा वास करने का वरदान प्राप्त किया। इस स्थान को पंचकेदार माने जाने के पीछे महाभारत की कथा को जोड़ा जाता है। महाभारत के युद्ध में विजय होने के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप मुाक्ति पाना चाहते थे, इसलिए वो शिव दर्शन के लिए निकले। भगवान शिव उनसे रुष्ट थे इस कारण जब पांडव काशी पहुंचे तो वो वहां भी नहीं थे। पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय आ गए, पर भगवान शिव वहां भी नहीं मिले और अंर्तध्यान होकर केदारनाथ आ गए। पांडव भगवान शिव को खोजते हुए केदारनाथ आ गए। भगवान शिव ने पांडवो से छुपने के लिए बैल का रुप ले लिया। पांडव भगवान शिव के इस खेल को जान गए, भीम ने अपने विशालकाय शरीर को दो पहाड़ों तक फैला लिया और अपना पैर रख दिया। पैर के नीचे से अन्य जानवर तो निकल गए लेकिन भगवान शिव वहां से नहीं निकले। ये देख भीम उस बैल पर झपटा तो उसके हाथ में बैल का त्रिकोणा पीठ का हिस्सा आया।

भगवान शिव पांडवों की इस श्रद्धा से प्रसन्न हो गए और उन्हें तत्काल दर्शन दिए और पापों से मुक्त कर दिया। उस समय के बाद से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रुप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। मंदिर में प्रातः काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रुप से स्नान कराकर उस पर घी का लेप लगाते हैं। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। श्रद्धालु इस समय भगवान शिव का पूजन करते हैं। केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी के घाट पर बना हुआ है और मंदिर के भीतर अंधकार ही रहता है और दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन किए जाते हैं।

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