पिछले साल आदित्य नाथ ने कहा था- एक सीएम हार चुका है उपचुनाव और गोरखपुर से नहीं लड़े थे?
पिछले साल जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में मतदान के बाद गोरखपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। क्योंकि नियम के मुताबिक अगर कोई मंत्री या मुख्यमंत्री बनते वक्त विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होता तो उसे छह महीने के भीतर किसी सदन का सदस्य होना जरूरी होता है। या तो संबंधित शख्स उपचुनाव के जरिए विधानसभा पहुंचे या फिर बिना चुनाव लड़े विधान परिषद के लिए नामित हो। उस समय योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा उपचुनाव लड़ने की जगह सीधे उच्च सदन यानी विधानसरिषद सदस्य बनना ज्यादा उचित समझा। खुद योगी आदित्यननाथ ने अपनी इस इच्छा से बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को अवगत करा दिया था। नहीं तो योगी आदित्यनाथ के लिए किसी विधायक को अपनी सीट खाली पड़नी पड़ती, तब उपचुनाव होता। पार्टी के भरोसेमंद सूत्र बताते हैं, तब योगी ने पार्टी नेतृत्व से साफ कहा था,”गोरखपुर से एक मुख्यमंत्री उपचुनाव हार चुके हैं। इस नाते वे उच्चसदन जाएंगे। इसी के साथ योगी और उनके दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या तथा दिनेश शर्मा भी विधान परिषद सदस्य बने।
गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव में करारी हार योगी की आशंकाओं को जाहिर करती है। दरअसल 1969 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार बनी और चंद्र भानु गुप्ता मुख्यमंत्री बने।मगर उन्हें भारतीय क्रांति दल के चौधरी चरण सिंह के लिए साल भर के भीतर ही कुर्सी छोड़नी पडी। मगर चौधरी चरण सिंह भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सात महीने ही टिक पाए। चरण सिंह ने बाद में विधानसभा भंग करने की सिफारिश की, मगर तत्कालीन राज्यपाल गी गोपाल रेड्डी ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा। फिर 17 दिन तक चले राष्ट्रपति शासन के बाद त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने, वे संयुक्त विधायक दल का नेतृत्व कर रहे थे, उनके साथ भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और कांग्रेस(ओ) के नेताओं का समर्थन रहा।
1952 और 1962 लोकसभा के मेंबर रह चुके वाराणसा निवासी त्रित्रुवन ने 18, अक्टूबर 1970 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। विधानसभा में उनका मार्ग प्रशस्त करने के लिए योगी आदित्यनाथ के गुरु दिवंगत महंत अवैद्यनाथ ने गोरखपुर की अपनी जीती हुई मनीराम सीट खाली की। मार्च 1971 में उपचुनाव हुआ। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रत्याशी राम कृष्ण दि्वेदी के पक्ष में जनसभा की। नतीजा यह रहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह उपचुनाव हार गए। उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया। कांग्रेस प्रत्याशी द्विवेदी को जहां 33,230 वोट मिले, वहीं मुख्यमंत्री सिंह को इससे आधा महज 17,137। जबकि 1969 में अवैद्यनाथ ने कांग्रेस प्रत्याशी द्विवेदी को हराया था। अवैद्यनाथ को तब 19,644 और द्विवेदी को 16,663 वोट मिले थे। त्रिभुवन नारायण सिंह तब देश के पहले ऐसे शक्स थे, जो विधानसभा के किसी भी सदन का सदस्य हुए बगैर मुख्यमंत्री बने थे।