पीएम नरेंद्र मोदी ने शान में पढ़े कसीदे, जानते हैं आखिर कौन हैं नानाजी देखमुख
नानाजी देशमुख की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ऐसे नेता युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत है जिन्होंने अपना जीवन देश के नाम सर्मिपत कर दिया लेकिन राजनीतिक पदों से हमेशा दूर रहे। मोदी ने कहा कि कि नानाजी देशमुख को देश ज्यादा जानता नहीं था लेकिन उन्होंने अपना जीवन दे दिया था। संसाधनों को ग्राम विकास के काम में लगाया। नानाजी देशमुख को मंत्री पद के लिए मोराराजी की सरकार में आमंत्रित किया गया, लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया। मोदी ने नानाजी को ग्राम सेवा में लगे रहने वाला कार्यकर्ता बताया। उन्होंने कहा कि नानाजी देशमुख ने स्वयं को राजनीतिक जीवन से निवृत कर करीब साढे 3 दशक तक चित्रकूट को केंद्र बनाकर अपने जीवन को ग्रामीण विकास के लिए खपा दिया। आज हम बता रहे हैं कि नानाजी देशमुख कौन हैं, जिनकी शान में प्रधानमंत्री नरेंद्र कसीदे पढ़े हैं।
नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के कडोली में 11 अक्टूबर 1916 को हुआ था। देशमुख संघ परिवार से जुड़े रहे हैं और जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे। इनकी गिनती भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में होती थी। आचार्य विनोबा भावे द्वारा शुरु किए गए भूदान आंदोलन के सक्रिय सदस्य भी रहे हैं। इन्होंने जय प्रकाश नारायण का भी समर्थन किया था। लोकमान्य तिलक की राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित देशमुख 1940 में महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। संघ के प्रचारक के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश का विस्तृत दौरा किया और पूर्वी उत्तर प्रदेश में संघ की विचारधारा का खूब प्रचार किया। राजनीतिक दल के रूप में जब भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई तो देखमुख को उत्तर प्रदेश में पार्टी के महासचिव का कार्यभार सौंपा गया।
बतौर सामाजिक कार्यकर्ता नानाजी ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 500 से अधिक गांवों में सामाजिक पुनर्गठन कार्यक्रम चलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने देश की पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना यूपी के गोरखपुर में साल 1950 में की थी। इसके साथ ही वे चित्रकूट में दिनदयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट के संस्थापक सदस्य भी रहे।
नानाजी के शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण क्षेत्र में कार्य को देखते हुए उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनित किया गया था। पद्मविभूषण से सम्मानित नानाजी ने देश की पहली ग्रामीण यूनिवर्सिटी ‘चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय’ की स्थापना की थी और इसके पहले चांसलर बने थे। देशमुख का 27 फरवरी 2010 को चित्रकूट में निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनकी इच्छा के मुताबिक उनका शव एम्स में डोनेट कर दिया गया था।