पीएम ने नहीं दिया वक्‍त, टूटी शांति निकेतन की 66 साल पुरानी परंपरा

पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय पहली बार बगैर दीक्षांच समारोह किए छात्रों को उपाधियां (डिग्री) देगा। द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार बीते 66 सालों में ऐसा पहली बार होगा और इसलिए डिग्री पाने वाले कई छात्र इससे निराश हैं। विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने टेलीग्राफ को बताया कि दीक्षांत समारोह के लिए चांसलर या उसके द्वारा नियुक्त किसी गणमान्य की मौजूदगी जरूरी है। देश का प्रधानमंत्री विश्व भारती का चांसलर होता है। विश्व भारती विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने टेलीग्राफ को बताया कि उन्हें कई बार अनुरोध करने के बावजूद मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय से कोई जवाब नहीं मिला। अधिकारियों ने दावा किया कि वो 2016 की शुरुआत से ही मानव संसाधन मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को इस बारे में लिखित अनुरोध करते रहे हैं।

विश्व भारती के अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी और को भी ये दायित्व नहीं दिया जैसे मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहने के दौरान तत्कालीन राज्यपाल एमके नारायणन को सौंपा था। आखिरी बार विश्वविद्यालय ने दिसंबर 2013 में दीक्षांत समारोह किया था जिसमें नारायणन शामिल हुए थे। अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि विश्व भारती ने प्रधानमंत्री कार्यालय और मानव संसाधन मंत्रालय को दो बार पत्र लिखा लेकिन उसे कहीं से जवाब नहीं मिला।

विश्व भारती के कार्यवाहक वाइस-चांसलर स्वप्न कुमार दत्ता ने टेलीग्राफ को बताया कि उन्होंने अप्रैल में अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान निजी तौर पर चांसलर को ये याद दिलाया था। दत्ता ने टेलीग्राफ से कहा, “प्रधानमंत्री ने मुझसे कहा कि उन्हें पता है कि दीक्षांत समारोह लंबित है। हम उनकी मंजूरी का इंतजार कर रहे थे।” दत्ता के अनुसार जब पीएमओ से जवाब नहीं आया तो मानव संसाधन मंत्रालय ने विश्वविद्यालय से कहा कि वो दीक्षांत समारोह का इंतजार किए बगैर प्रमाणपत्र वितरित कर दे।

विश्व भारती में पिछले चाल साल से दीक्षांत समारोह नहीं हुआ है। विश्वविद्यालय के करीब 15 हजार स्नातकों और परास्नातकों को डिग्री दी जानी है। विश्वविद्यालय ने पिछले महीने से ही छात्रों को डिग्री देने शुरू कर दी है। विश्वविद्यालय ने बताया है कि जो छात्र डिग्री के लिए आवेदन कर रहे हैं उन्हें यथाशीघ्र इसे दिया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती, शांतिनिकेतन की स्थापना 1921 में बांग्ला कवि और लेखक रविंद्रनाथ टैगौर ने की थी। 1951 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। प्रधानमंत्री विश्वविद्यालय के पदेन आचार्य (चांसलर) होते हैं। वहीं राज्य के  राज्यपाल इसके पदेन रेक्टर होते हैं।

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