पूरी दिल्ली वक्फ की जमीन पर बसी है, सरकार ने किया हमारा अतिक्रमण: मौलाना उमेर अहमद इल्यासी
सुमन केशव सिंह
दिल्ली की पहचान बन चुके झंडेवालान के 108 फुट के हनुमान की प्रतिमा को एअर लिफ्ट करने के आदेश ने बड़े सवाल उठाए थे। आरोप था कि फुटपाथ की जमीन पर कब्जा कर मंदिर बनाया गया जिसकी वजह से सड़क संकरी हो गई है। खैर, यहां तो आस्था का मामला जीत गया लेकिन यह सवाल दिल्ली के हर कोने पर उठता दिख रहा। लोग पूछते हैं कि जब अतिक्रमण कर मंदिर या मस्जिद की बुनियाद डाली जाती है तब प्रशासन क्यों सोया रहता है?
साउथ दिल्ली के आरकेपुरम का मलय मंदिर सामने से गुजरने वाले फ्लाइओवर की राह का रोड़ा बन चुका है। केंद्रीय सचिवालय के पास इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के पास का मंदिर भी फुटपाथ की जगह पर बनाया गया है, जिसे एनडीएमसी ने कई बार हटाने की कोशिश की। लेकिन धार्मिक मान्यताओं और आस्था के सहारे यह मंदिर भी मौजूद है। लक्ष्मीनगर बस डिपो के पास का शिवमंदिर भी सड़क का अतिक्रमण कर बनाया गया है और जाम का कारण बन रहा है।
इसके अलावा कस्तूरबा गांधी मार्ग पर बीच चौराहे स्थित आॅल इंडिया इमाम एसोसिएशन की मस्जिद, नई दिल्ली रेलवे के प्लेटफॉर्म नंबर दो-तीन पर स्थित गरीब शाह मस्जिद, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर तीन पटरियों के बीच पीर का मजार और पुरानी दिल्ली के प्लेटफॉर्म नंबर चार व पांच के बीच बक्से और रस्सियों से बांध कर घेरी गई जगह जहां नमाज अता की जाती है। आम लोगों की नजर में अतिक्रमण पर कोर्ट को सख्त फैसले लेने चाहिए। धार्मिक मान्यताओं को ध्यान रखा जाना चाहिए लेकिन लोगों की सुविधा भी जरूरी है।
गैरकानूनी निर्माण के दौरान ही होनी चाहिए कार्रवाई
सवाल : विकास, निर्माण या किसी बड़े उद्देश्य के लिए जिस प्रकार से हनुमान की मूर्ति को एअर लिफ्ट करने की बात है उसी तरह मस्जिदों को भी एअर लिफ्ट किया जा सकता है? क्योंकि मस्जिद भी ऐसी जगहों पर हैं जो अतिक्रमण जैसे लग रहे हैं।
’देखिए जो मंदिर या मस्जिद बन गए अब उन्हें किसी तरह से हटाना ठीक नहीं। हां, नए बनाए जा रहे धर्मस्थलों पर अथॉरिटी को तुरंत एक्शन लेना चाहिए। यह इलाके के अधिकारियों की काहिली है। रही बात मस्जिदों के अतिक्रमण की तो इस्लामिक कानून के अनुसार मस्जिद अतिक्रमण की जमीन पर नहीं बनाई जा सकती है। मस्जिद बनाने में हराम का पैसा नहीं लगा होना चाहिए। इस्लामिक कानून के मुताबिक मस्जिदों को एअर लिफ्ट भी नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें महत्त्व जमीन के उसी टुकड़े का होता है।
सवाल : दिल्ली में कई मस्जिदें या मजारें सड़क के बीच में है। इसे अतिक्रमण नहीं माना जाए?
’पहली बात तो यह कि आपको इतिहास समझना होगा। कस्तूरबा गांधी मार्ग की यह मस्जिद करीब 536 साल पुरानी है। मस्जिद की जमीन छह एकड़ की है। मुगलकाल से यह पूरा क्षेत्र कब्रिस्तान था। 1901 में लॉर्ड कर्जन ने नई दिल्ली बसाने के लिए हमारी जमीन का अधिग्रहण किया। उस वक्त दिल्ली की सारी जमीन वक्फ वोर्ड की संपत्ति थी। अतिक्रमण सरकार ने किया हमने नहीं। जब लॉर्ड कर्जन ने दिल्ली बसाने का फैसला किया उस वक्त वक्फ बोर्ड नहीं होता था। उस वक्त ये जमीन मुसलिम मजलिसे आॅकाफ के तहत आती थी। लॉर्ड कर्जन ने हमारी जमीन ली जिसका काफी विरोध हुआ। कर्जन ने कहा कि शहर बसाने के लिए जमीन की जरूरत होगी तो उनका अधिग्रहण किया जाएगा लेकिन उन जगहों पर जहां जो ढांचा बन गया है उसे छेड़ा नहीं जाएगा। उसमें इबादत भी नहीं होगी और उसका रख-रखाव भी नहीं होगा। उस वक्त हमारा प्रतिनिधित्व लियाकत अली खान कर रहे थे। जो बाद में पाकिस्तान चले गए थे। इंडिया गेट से जो रोड बनी उसका नाम कर्जन रोड था। यह बाद में कस्तूरबा गांधी मार्ग के नाम से जाना जाता है।
सवाल : दिल्ली में वे मस्जिदें-मजारें कहां हैं जिनका सरकार ने अतिक्रमण किया है?
’मोती लाल एक नंबर कोठी है, अब यह नितिन गडकरी का सरकारी आवास है। वहां एक मस्जिद है। यहां नमाज नहीं होती। सोनिया गांधी की कोठी में एक मस्जिद और दो बड़ी दरगाहें हैं। 11 नंबर अशोक रोड जहां आज भाजपा का दफ्तर है वहां भी एक दरगाह है और एक मस्जिद है। उपराष्टÑपति भवन मौलाना आजाद रोड, वहां हमारी एक मस्जिद एक दरगाह है। इसी तरह जनपथ की मस्जिद, इंडिया गेट में पानी के अंदर की मस्जिद। दिल्ली में 83 मस्जिदें और 100 से ज्यादा दरगाहें हैं। जो मुगल काल से यहां मौजूद हैं। यानी हमारी पर अतिक्रमण है। हमने जमीन छोड़ीं हैं। साथ ही आपको सड़कों के किनारे भी जो दरगाहें दिखाई देतीं हैं ये सभी वक्फ संपत्ति पर बनी हैं। 62 मस्जिदों पर नमाज होती हैं। 50 दरगाहों पर नमाज होती है।
मुगल काल से पहले तो पूरा भारत राम का था
’ ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जहां अतिक्रमण कर धर्म स्थल बनाए गए हैं। इन्हें 60-70 सालों में बढ़ावा भी दिया जाता रहा है। सरकारों ने कोई साफ नीति नहीं बनाई। केवल हिंदू धर्म स्थलों को ही निशाना बनाया जाता रहा है। जबकि ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जहां मंदिरों ने अपनी जमीन लोगों की भलाई के लिए दान दी या मंंदिरों का स्थान किया। ये बात पूरी तरह गलत है कि मस्जिदों का स्थानांतरण नहीं हो सकता। हिंदू मंदिरों के निर्माण और मूर्ति स्थापना से पहले विधिवत प्राण प्रतिष्ठा होती है।
सवाल : मुगल शासन काल के दौरान दिल्ली में मुगलों का राज था इस लिहाज से ये पूरी जमीन वक्फ की थी, इसपर क्या कहना है?
’अगर वे मुगल काल की बात करेंगे तो हम राम के काल की बात करेंगे। पूरे भारत पर राम का राज था इस लिहाज से पूरा भारत राम का है। उसके बाद हिंदू राजाओं का शासन था।
सवाल : क्या मस्जिदों के हटाए जाने के उदाहरण हैं?
’सऊदी अरब से बड़ा मुसलिम देश कोई नहीं। वहां हजारों मस्जिदों को हटाया गया है। पाकिस्तान में भी मस्जिद हटाई गई हैं। ऐसे में यहां ये नियम इनके खुद के बनाए हुए हैं।
एक साफ नीति होनी चाहिए और सभी धर्म स्थलों को हटाने की पारदर्शी नीति बननी चाहिए। ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं किसी स्थान पर तीनों धर्मस्थल हैं दो को हटा दिया गया और एक को छोड़ दिया गया।
सवाल : इस हनुमान मूर्ति को हटाए का आदेश था। आपका क्या कहना है?
’इस हनुमान मंदिर का इतिहास लगभग दो सौ साल पुराना है। महंत सेवागिरि महाराज ने मंदिर निर्माण कराया है। उन्हें सपने में हनुमान जी ने दर्शन दिए थे। तब जाकर यहां मंदिर का निर्माण हुआ। जब यहां मंदिर बना तब यहां सड़कें नहीं थीं, मेट्रो नहीं थी। जंगल था। जिस हनुमान की मूर्ति की यहां पूजा होती है वह जंगल में जमीन से प्रकट हुई थी। मेट्रो निर्माण के दौरान कोठियों को बचाने के लिए मेट्रो के पिलर को मंदिर की तरफ दबा दिया गया। अब सड़क एक तरफ संकरी हो गई और दूसरी ओर ज्यादा चौड़ी। अगर जाम को लेकर दिल्ली सरकार इतनी ही संवेदनशील है तो दूसरे कदम उठाए।
-पंडित गणेश दत्त पांडेय, महंत, हनुमान मंदिर, झंडेवालान
नहीं हटाई जा सकती हनुमान जी की प्रतिमा
स्कूलों को आसानी से स्थानांतरित किया जा सकता है। यहां गलती तो मेट्रो की है। उस वक्त भी हमने विरोध किया लेकिन हिंदुस्तान में हिंदुओं की सुनता कौन है? कई मस्जिदें और मजारें हैं कोई उसे एअर लिफ्ट कर के दिखाए! यह मूर्ति 108 फुट ऊंची और 50 फुट की इसकी नींव है। इस मूर्ति के निर्माण के बाद इसकी प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है अब इसमें हनुमान जी का वास है। यहां अखंड रामायण का पाठ होता है।