पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त का सुझाव- नोटा मतों की संख्या जीत के अंतर से अधिक होने पर फिर से कराया जाए चुनाव
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव कराने की वकालत की है जहां जीत का अंतर नोटा मतसंख्या की तुलना में कम रही और विजयी उम्मीदवार एक तिहाई मत जुटाने में भी नाकाम रहे। उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि भारत में ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट निर्वाचन प्रणाली’ अब अपनी उपयोगिता खत्म कर चुकी है। कृष्णमूर्ति ने पीटीआई को बताया, ‘‘मेरे विचार में नोटा बहुत बेहतर है। हमें यह कहना चाहिए कि अगर नोटा मतों के कुछ निश्चित प्रतिशत को पार कर जाता है जैसे अगर विजेता एवं पराजित उम्मीदवार के बीच मतों का अंतर नोटा मतों से कम होता है, तो आप कह सकते हैं कि हमें दूसरी बार चुनाव कराना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि इस उपाय को लागू करने के लिए कानून बनाने की जरूरत है।
नोटा (नन आॅफ द एबव) मतदाता को यह अधिकार देता है कि वह किसी खास सीट से चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार के लिए मतदान नहीं करे। गुजरात में हालिया विधानसभा चुनावों में 5.5 लाख से अधिक या 1.8 प्रतिशत मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर नोटा बटन दबाया था। वहां कई विधानसभा क्षेत्रों में जीत का अंतर नोटा मतों की संख्या से कम था। गुजरात विधानसभा चुनावों में नोटा मतों की संख्या कांग्रेस एवं भाजपा को छोड़कर किसी भी अन्य पार्टी के मतों की संख्या से अधिक थी।
उल्लेखनीय है कि गुजरात विधान सभा चुनावों में बीजेपी ने डबल हैट्रिक लगाते हुए जहां लगातार छठी बार वापसी की थी, वहीं कांग्रेस ने भी जबर्दस्त भरपाई की थी। बीजेपी सत्ता में तो आ गई लेकिन 16 सीटें गंवा बैठी है जबकि कांग्रेस ने अकेले 16 सीटों का इजाफा किया था। बीजेपी को कुल 99 तो कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं। वहीं दो साल पहले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बीजेपी-कांग्रेस को धूल चटाने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को गुजराती जनमानस ने धूल चटा दी थी। हालात इतने बदतर रहे कि पार्टी के 30 उम्मीदवारों में से दो को छोड़ बाकी सभी की जमानत जब्त हो गई थी। इन दोनों को छोड़ बाकी सभी 28 उम्मीदवारों को नोटा से भी कम वोट पड़ा था। कतरग्राम से नागाजी अंबालिया को कुल 4135 वोट मिले थे जबकि नोटा पर 1693 लोगों ने बटन दबाया था।