पेट्रोल-डीजल कीमत सरकार नहीं तय करेगी: वित्त मंत्री अरुण जेटली

नई दिल्ली: तेल पर एक्‍साइज ड्यूटी घटाने के दो दिन बाद केंद्र सरकार ने साफ किया है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण में नहीं लाया जाएगा. 2010 में सरकार ने पेट्रोल कीमतों को नियंत्रण मुक्‍त कर दिया था. फिर 2014 में डीजल को भी इसी दायरे में ले आया गया. फिर दोनों ईंधन की कीमतें रोजाना तय होने की व्‍यवस्‍था लागू कर दी गई. अक्‍टूबर 2014 से पहले सरकार इनकी कीमत तय करती थी. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने फेसबुक पोस्‍ट में लिखा है-‘मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि हम तेल कीमतों को सरकारी नियंत्रण में लाने की पुरानी व्‍यवस्‍था में लौटने वाले नहीं.’

जेटली ने एक अन्‍य कार्यक्रम में कहा कि सरकार राजकोषीय घाटे को तय लक्ष्य के दायरे में रखने को प्रतिबद्ध है और चालू खाते के घाटे को कम करने और देश में विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ाने के लिए जल्द ही कुछ और कदम उठाएगी. जेटली ने कहा विपरीत वैश्विक हालातों के बावजूद भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए एक प्रमुख स्थान बना रहेगा. हालांकि, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को लेकर कुछ अस्थायी दिक्कतें रह सकती हैं, लेकिन यह भी वैश्विक हालात पर ज्यादा दिन निर्भर नहीं रहेंगी.

वित्त मंत्री ने कहा कि राजकोषीय स्थिति को सुदृढ़ बनाए रखना सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है. उन्होंने कहा, ‘मेरे हिसाब से राजकोषीय अनुशासन को बनाए रखना सबसे जरूरी प्राथमिकताओं में से एक है. यह हमेशा मदद करता है. आप तभी कुछ सुविधा ले सकते हैं जब आपकी राजकोषीय स्थिति मजबूत होती है अन्यथा यह मुमकिन नहीं.’ जेटली ने कहा, ‘धीरे-धीरे राजकोषीय घाटे को हम 4.6% से नीचे लाए हैं और इस साल हम इसे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3.3% पर लाने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि जिस तरह का राजस्व संग्रहण प्रत्यक्ष कर से हो रहा है, हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे.’

उन्होंने कहा, जहां तक कैड का सवाल है, यह कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों से जुड़ा है क्योंकि विदेशी मुद्रा का अधिकतर खर्च तेल खरीदने में होता है. जेटली ने कहा, ‘जिस तरह से कीमतें (कच्चे तेल की) ऊपर जा रही हैं, जो कि पिछले चार साल में सबसे अधिक पर हैं, इसका कैड पर थोड़ा प्रतिकूल असर होगा. हम इसे सीमित करने के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं लेकिन यह दो बाहरी बातों पर निर्भर करेंगे. पहला है तेल की कीमतें और दूसरा अमेरिका की नीतियां जिससे डॉलर मजबूत हो रहा है और इससे सारी दुनिया की मुद्राओं पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है.’

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