प्रधानमंत्री का नया जोशीला नारा ‘करेंगे और करके रहेंगे’ महज एक नारा बन कर न रह जाए

भारत छोड़ो आंदोलन के 75 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री ने युवा वर्ग का आह्वान करते हुए कहा था कि आज कई समस्याओं, मसलन गरीबी, कुपोषण, जातिवाद को भारत छोड़ने के लिए बाध्य करना है। इस अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम ‘संकल्प से सिद्धि’ की घोषणा भी की गई। ऐसी उम्मीद की गई कि अगर हम आज उपरोक्त समस्याओं को दूर करने का संकल्प लें तो 2022 में भारत इनसे आजाद हो जाएगा। जैसे 1942 के ठीक 5 वर्ष बाद 1947 में भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिल गई थी।

प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों देश के जिलाधिकारियों से सीधे संवाद किया। उन्हें फाइलों से बाहर निकल कर जिले की हकीकत देखते हुए काम करने को कहा गया। हर किसी को अपने स्तर पर लक्ष्य तय करने को कहा गया। निश्चित ही यह रवैया प्रशासन के परंपरागत रूप से काफी अलग नजर आता है। भारत को आजाद हुए सत्तर साल हो गए फिर भी यह कुछ गंभीर विसंगतियों का देश कहलाता है। एक तरफ भारत महाशक्ति कहलाने का आतुर दिखता है और कुछ मायने में महाशक्ति कहा भी जाने लगा है मगर दूसरी ओर भारत में सबसे जयादा कुपोषित, गरीब और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित आबादी रहती है।
जब भारत आजाद हुआ था तब इसके सामने बेहद गंभीर चुनौतियां थीं- शरणार्थियों का पुनर्वास, राज्यों की एकता, भाषाई चुनौती और कश्मीर मसला। निश्चित ही भारत ने आजादी के बाद काफी प्रगति की है। शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, सीमा रक्षा, तकनीक, ऊर्जा के मसलों पर भारत ने खूब प्रगति की है लेकिन इन सालों में एक जटिल समस्या से भी जूझता रहा और वह है विषमता। चाहे वह वर्गगत हो या क्षेत्रगत, दोनों ही नजरिये से समानता कायम करने में विफल रहा है। आॅक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, आजादी से समय से अब तक भारत में अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी हुई है। आखिर इसकी वजह क्या हो सकती है?

दरअसल, विकास के लाभ भ्रष्टाचार के चलते कुछ वर्गों तक ही सीमित रहे या कहें कि उनके द्वारा लपक लिए गए। भारत में अक्सर नीति-पंगुता बनाम क्रियान्वयन विफलता पर बहस की जाती है। मेरे हिसाब से दोनों ही मसलों में भारत विफल रहा। लाइसेंस राज में लोग अपने उद्योग के विकास के बजाय मंत्रालय में जोड़-तोड़ भिड़ाने में लगे रहे। इसी तरह देश के एक प्रधानमंत्री ने खुद स्वीकारा कि दिल्ली से आने वाले एक रुपए में मात्र 15 पैसे ही गरीब तक पहुंच पाते हैं। बहरहाल, अब आशा है कि प्रधानमंत्री का नया जोशीला नारा ‘करेंगे और करके रहेंगे’ महज एक नारा बन कर न रह जाए। सभी देशवासियों को इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करने होंगे।

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