प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर उनकी लिखी कविताएं: ‘जलते गए, जलाते गए’
नई दिल्ली: कविताएं मन की गहराइयों से निकलती हैं और मन की गहराइयों को छू जाती हैं. ऐसे में हमारे दौर के सर्वाधिक लोकप्रिय और चर्चित व्यक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझने के लिए उनकी लिखी कविताओं से बेहतर और क्या हो सकता है. और इन कविताओं को पढ़ने के लिए उनके जन्मदिन से बेहतर दिन और कौन सा हो सकता है. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के दिन प्रस्तु हैं उनके द्वारा लिखी गईं कुछ कविताएं. ये कविताएं मूल रूप से गुजराती में लिखी गईं हैं. यहां उनका हिंदी अनुवाद प्रस्तुत हैं.
‘जलते गए, जलाते गए’
यह कविता पीएम मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के लिए लिखी थी और मूल रूप से उनकी पुस्तक ज्योतिपुंज में प्रकाशित हुई थी. ज्योतिपुंज में उन्होंने आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ताओं के बारे में लिखा है कि उनका जीवन कैसा था, और संगठन तथा देश के लिए उन्होंने कैसे त्याग किए.
आंधियों के बीच
जल चुके
कभी
बुझ चुके कुछ दीप थे.
और भी कुछ दीप थे
तिमिर से लोहा लिए थे
बहाते-बहाते
प्रकाश
यों तो अंधकार में समा गए थे,
पर एक दीप
जो आप थे
जलते गए,
जलाते-जलाते.
आंधी आए
तिमिर छाए
फिर भी जले,
जलाते-जलाते.
अंधकार से जूझता था
संकल्प जो उर में भरा था
सूरज आने तक जलना था
बस, जलते गए,
जलाते-जलाते.
जो जले थे
जो जले हैं
जो जल रहे हैं
बन किरण फहरा रहे हैं
रोशनी बरसा रहे हैं
तभी तो
सिद्धियों का सूरज निकल पड़ा है
चहुंओर रोशनी-ही-रोशनी
समाया वह दीप जो.
नई दिल्ली: कविताएं मन की गहराइयों से निकलती हैं और मन की गहराइयों को छू जाती हैं. ऐसे में हमारे दौर के सर्वाधिक लोकप्रिय और चर्चित व्यक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझने के लिए उनकी लिखी कविताओं से बेहतर और क्या हो सकता है. और इन कविताओं को पढ़ने के लिए उनके जन्मदिन से बेहतर दिन और कौन सा हो सकता है. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के दिन प्रस्तु हैं उनके द्वारा लिखी गईं कुछ कविताएं. ये कविताएं मूल रूप से गुजराती में लिखी गईं हैं. यहां उनका हिंदी अनुवाद प्रस्तुत हैं.
प्रधानमंत्री मोदी की कविताएं रहस्यवादी लगती हैं. इसकी वजह ये है कि पीएम मोदी की कविताओं की विषय-वस्तु में अधिकार और वैराग्य एक साथ मिलते हैं. इन कविताओं को पढ़कर एक पल ऐसा लगता है कि वो सारे संसार को मुट्ठी में कर लेने का साहस और इरादा रखते हैं और कविता की अगली ही पंक्ति परम वीतरागी सन्यासी की होती है. उनको सबकुछ चाहिए, लेकिन किसी भी चीज से उन्हें मोह नहीं. यही उनकी कविता की खूबसूरती है. आइए उनकी कुछ चुनिंदा कविताओं की गहराइयों में चलें-
1. ‘जलते गए, जलाते गए’
modi
यह कविता पीएम मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के लिए लिखी थी और मूल रूप से उनकी पुस्तक ज्योतिपुंज में प्रकाशित हुई थी. ज्योतिपुंज में उन्होंने आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ताओं के बारे में लिखा है कि उनका जीवन कैसा था, और संगठन तथा देश के लिए उन्होंने कैसे त्याग किए.
आंधियों के बीच
जल चुके
कभी
बुझ चुके कुछ दीप थे.
और भी कुछ दीप थे
तिमिर से लोहा लिए थे
बहाते-बहाते
प्रकाश
यों तो अंधकार में समा गए थे,
पर एक दीप
जो आप थे
जलते गए,
जलाते-जलाते.
आंधी आए
तिमिर छाए
फिर भी जले,
जलाते-जलाते.
अंधकार से जूझता था
संकल्प जो उर में भरा था
सूरज आने तक जलना था
बस, जलते गए,
जलाते-जलाते.
जो जले थे
जो जले हैं
जो जल रहे हैं
बन किरण फहरा रहे हैं
रोशनी बरसा रहे हैं
तभी तो
सिद्धियों का सूरज निकल पड़ा है
चहुंओर रोशनी-ही-रोशनी
समाया वह दीप जो.
2. वसंत का आगमन
पीएम मोदी की एक अन्य कविता है – वसंत का आगमन. इसमें उन्होंने जीवन को बदलते मौसम-चक्र के रूप में चित्रित किया है-
अंत में आरंभ है, आरंभ में है अंत,
हिय में पतझर के कूजता वसंत.
सोलह बरस की वय, कहीं कोयल की लय,
किस पर है उछल रहा पलाश का प्रणय?
लगता हो रंक भले, भीतर श्रीमंत
हिय में पतझर के कूजता वसंत.
किसकी शादी है, आज यहाँ बन में?
खिल रहे, रस-रंग वृक्षों के तन में
देने को आशीष आते हैं संत,
हिय में पतझर के कूजता वसंत.