पड़तालः जन औषधि केंद्र को बंद कर खोल दी किराने की दुकान

गजेंद्र सिंह

प्रदीप बरेली में जन औषधि केंद्र चलाते थे। अब उन्होंने इसे बंद कर किराने की दुकान खोल ली है। प्रदीप के मुताबिक दवाओं की आपूर्ति चरमरा गई थी। प्रदीप ने फिलहाल एमफार्मा में दाखिला लिया है और वे आगे भी इस कारोबार से जुड़ना चाहेंगे। जन औषधि केंद्र 2008 में सरकार की शुरू की गई लोकप्रिय योजनाओं में से एक है। लेकिन दवाओं की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में नहीं होने से इसके केंद्र संचालक निराश हैं। बहुत से स्थानों पर जन औषधि केंद्र बंद भी हो गए हैं। इस योजना की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले जहां देशभर में सिर्फ 1600 जन औषधि केंद्र थे, वहीं अब इनकी संख्या तीन हजार के पार चली गई है। 3570 योजना के तहत दवा आपूर्ति की जिम्मेदारी सिर्फ एक कंपनी बीपीपीआइ (ब्यूरो ऑफ फार्मा पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग ऑफ इंडिया) को दी गई है।

जन औषधि केंद्र संचालकों का कहना है कि देशभर के सभी केंद्रों पर दवा आपूर्ति करने का भार सिर्फ एक कंपनी पर ही है, इसलिए समय से दवा नहीं मिल पा रही है। अब तो हाल यह है कि मधुमेह और कैल्शियम की जरूरी दवाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। कंपनी करीब 700 दवाओं की आपूर्ति का दावा करती है, लेकिन फिलहाल 250 से 300 दवाएं ही केंद्रों तक पहुंच रही हैं।

दिल्ली के पश्चिम विहार में जन औषधि केंद्र चलाने वाले चंद्रमोहन सिंगला बताते हैं कि केंद्र खोलते समय तो दवाओं की आपूर्ति की बात कही गई थी, लेकिन अब वह नहीं हो रही है। बकौल चंद्रमोहन, दवाओं की कमी का आंकड़ा 95 फीसद से अधिक है। दिल्ली में इस समय 45 जन औषधि केंद्र चल रहे हैं। सभी में यही हालत है। दिल्ली के एक वितरक बताते हैं कि तीन साल से उन्हें पूरा माल नहीं मिल रहा है। अगर 25 लाख रुपए का ऑर्डर करते हैं तो सिर्फ दो से चार लाख तक की दवाएं ही मिल पाती हैं।
उत्तराखंड में 100 जन औषधि केंद्र खोले गए हैं। यहां रेड क्रॉस सोसायटी के तहत खोले गए केंद्र के सचिव डॉ एमएस अंसारी ने बताया कि दवाओं की किल्लत पिछले चार-पांच महीने से चल रही है। उत्तर प्रदेश के बरेली में अपना औषधि केंद्र बंद कर चुके अनुराग सक्सेना बताते हैं कि पिछले साल मई में उन्होंने केंद्र खोला था, लेकिन उन्हें घाटा हुआ। दवा न होने से मरीज लौट रहे थे। दुकान का किराया भी 8000 रुपए था, जो बड़ी मुश्किल से निकल रहा था। दवाओं की आपूर्ति तो कम थी ही, साथ में दवाओं की नई खेप भी नहीं आई थी।

बरेली के एक अन्य केंद्र संचालक दीपक गंगवार बताते हैं कि केंद्र खोलते समय बीपीपीआइ की ओर से बताया गया था कि 800 दवाओं की आपूर्ति की जाएगी, जिसमें इंसुलिन से लेकर कैंसर तक की दवाएं शामिल थीं, लेकिन आपूर्ति केवल 250 दवाओं की ही होती है। दवाओं के बाजार में रक्तचाप, मधुमेह, टीबी, हृदय व न्यूरो की सारी दवाएं मौजूद है। लेकिन बीपीपीआइ हमेशा आश्वासन देती है कि 15 दिन में पूरी आपूर्ति हो जाएगी। उनका कहना है कि बरेली के सभी केंद्र संचालकों ने दवाओं की आपूर्ति न होने के कारण केंद्र बंद करने का फैसला किया है। प्रदीप का कहना है कि इतनी अच्छी योजना के बावजूद डॉक्टर दवाओं के सॉल्ट नाम नहीं लिखते हैं, जिससे गरीबों को जेनरिक दवाएं नहीं मिल पाती हैं। नोएडा के सेक्टर 29 में जन औषधि केंद्र संचालक अनूप खन्ना बताते हैं कि मेरी बिक्री काफी अच्छी है लेकिन मैं दुकान का खर्च नहीं निकाल पाता हूं। इतनी अच्छी योजना में बहुत दुश्वारियां हैं।

इस बारे में बीपीपीआइ के मीडिया सेल के उप प्रबंधक भरत लाल से बात की गई तो उन्होंने जवाब देने के बजाए उच्च अधिकारियों को जिम्मेदार बता दिया। इसके बाद सीईओ सचिन सिंह को दो बार जवाब के लिए ईमेल किया गया, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया। उन्हें फोन किया गया तो व्यस्तता की बात कहकर उन्होंने ईमेल से जवाब देने की बात कही थी।

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