फिल्म समीक्षा- हंसाना में सफल होती है गोलमाल अगेन

रवींद्र त्रिपाठी

तो ‘गोलमाल शृंखला’ की नई फिल्म भी आ गई जिसका असली मकसद है हंसाना, जिसमें यह सफल भी होती है। पूरी फिल्म हंसी के गोलगप्पों की दुकान है। मगर साथ में ये भी कहना पड़ेगा कि इस बार रोहित शेट्टी ने इस बार इसमें दो और मसाले में डाले हैं। हत्या और भूत। कह सकते हैं कि ये कॉमिक मिस्ट्री है। इसमें केंद्रीय भूमिका एक आत्मा यानी भूतनी की है। इस भूतनी का किरदार परिणिति चोपड़ा ने निभाया है। ‘गोलमाल’ शृंखला के कई पुराने किरदार यहां हैं। जैसे गोपाल (अजय देवगन), माधव (अरशद वारसी), लकी (तुषार कपूर), लक्ष्मण आप्टे (श्रेयस तलपदे),और लक्ष्मण शर्मा (कुणाल खेमू)। पांचों एक अनाथाश्रम में पलते हैं लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि उनको वहां से बाहर निकलना पड़ता है।

पांचों दो गुटों में बंट जाते हैं। एक दूसरे के जानी दुश्मन।  और जैसा कि फिल्मों की कहानियों में अक्सर मोड़ आते हैं, इन पांचों की जिंदगी भी पीछे की तरफ मुड़ती है। हालात ऐसे बनते हंै कि पाचों जवानी के दिनों में एक बार फिर उसी अनाथाश्रम में पहुंचते हैं क्योंकि जिस व्यक्ति, जमनादास, ने अनाथाश्रम बनाया उसकी मौत हो चुकी है। सिर्फ उसी की नहीं बल्कि उस बच्ची खुशी (परिणिति चोपड़ा) की भी, जिसे ये पांचों बचपन में अनाथाश्रम में लाए थे और जिसका इनके अनाथाश्रम से बाहर जाने के बाद दामिनी नाम पड़ गया था।जब वे अनाथाश्रम में कुछ दिन रह लेते हैं तब उनको मालूम होता है कि जिन मौतों को उन्होंने सामान्य समझा था वे दरअसल हत्याएं थीं। किसने की ये हत्याएं? इन हत्याओं का मकसद क्या था और क्या ये पाचों मिलकर रहस्य की गुत्थी खोल पाएंगे?
रोहित शेट्टी ने यहां जो पंचमेल खिचड़ी बनाई है उसमें हंसी भरपूर है। और रहस्य भी। बहुत देर के बाद पांचों को पता चलता है कि जिस लड़की को वे एक ही कपड़े में बार बार देख रहे थे और  नौकरानी समझ रहे थे, वह तो खुशी दामिनी नहीं बल्कि उसका भूत है।

ये दीगर बात है कि भूतनी डरावनी नहीं बल्कि मासूम लगती है। संजय मिश्रा और मुकेश तिवारी जैसे चरित्र ही नहीं प्रकाश राज जैसे खलनायक भी जमकर हंसाते है। बस सिर्फ दो ही चरित्र कुछ संजीदा हैं। एक तो नील नितिश मुकेश, जो मुख्य खलनायक बने हैं। दूसरी तब्बू, जो ऐसी लाइब्रेरियन बनी हैं जो भूतों को साक्षात देख सकती हैं। नाना पाटेकर की आवाज और एक जगह रुहानी किस्म का चरित्र भी कॉमिक है। फिल्म में दक्षिण भारत के मशहूर पर्यटन केंद्र ऊटी की हरीतिमा भी भरपूर दीखती है। फिल्म की कहानी में सस्पेंस डालने की वजह से अजय देवगन का चरित्र ‘गोलमाल’ शृंखला की पहली फिल्मों की तरह केंद्रीय नहीं रह पाया है।हालांकि उनको रोहित शेट्टी ने एक्शन दिखाने का भरपूर मौका दिया है और वे कई बार बदमाशों की जमकर ठुकाई करते दिखते हैं। फिर भी ये कहना पड़ेगा कि आखिर में इस फिल्मी कहानी का मुख्य फोकस परिणिति चोपड़ा की तरफ झुक गया है। और इसी वजह से अंत में ये फिल्म भावनाप्रधान हो गई है।

 

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