बंगाल में डेरा जमा रहे हैं रोहिंग्या
म्यामांर के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों पर सेना के अत्याचारों और उनके पलायन की खबरें हाशिए पर जाने के बाद अब ये लोग बांग्लादेश होकर धीरे-धीरे पश्चिम बंगाल में घुस रहे हैं। ऐसे आठ परिवारों के कोई ढाई दर्जन से ज्यादा सदस्य कोलकाता से महज 40 किलोमीटर दूर दक्षिण 24-परगना जिले के बारूईपुर इलाके में रहने लगे हैं। तीन दर्जन से भी ज्यादा स्वयंसेवी संगठन इनकी सहायता कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जहां केंद्र की ओर से शरणार्थियों के पुनर्वास की कोई ठोस नीति घोषित नहीं होने तक इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने की बात कही है, वहीं विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए उसे कठघरे में खड़ा किया है।
आठ अस्थायी घरों में 29 लोग
फिलहाल दक्षिण 24 परगना जिले में बसी एक बस्ती के आठ अस्थायी घरों में 11 बच्चों समेत 29 लोग रह रहे हैं। पहले कुछ दिनों तक तो स्थानीय लोगों ने विभिन्न संगठनों की सहायता से इनके खाने-पीने का इंतजाम किया था। अब ये लोग काम की तलाश में जुटे हैं। इन शरणार्थियों की सहायता करने वाले संगठनों ने अब ऐसे लोगों को देश की नागरिकता देने की मांग उठाई है।
पांच हजार को बसाने की योजना!
रोहिंग्या शरणाथिर्यों की अस्थायी बस्ती बसाने में अग्रणी रहे एक संगठन देश बचाओ सामाजिक कमिटी के अध्यक्ष हुसैन गाजी कहते हैं कि संगठन गांव में पांच हजार रोहिंग्या परिवारों को बसाने की योजना बना रहा है। गांव वालों ने इसके लिए स्वेच्छा से जमीन दी है। गाजी ने मुख्यमंत्री को एक पत्र भेजकर ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता देने की दिशा में भी ठोस पहल करने की अपील की है। संगठन ने बांग्लादेश के अलावा देश के दूसरे हिस्से में रहने वाले रोहिंग्या शरणाथिर्यों से भी यहां आ कर बसने की अपील की है। गाजी का दावा है कि बंगाल के विभिन्न इलाकों में फिलहाल चार हजार से ज्यादा रोहिंग्या रह रहे हैं। ऐसे कई लोग कागजात नहीं होने की वजह से जेल में हैं। संगठन का दावा है कि पुलिस प्रशासन को इसकी सूचना दे दी गई है। पुलिस की विभिन्न टीमों ने मौके पर जाकर इन शरणार्थियों से पूछताछ भी की है। इन सबके पास संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग की ओर से जारी शरणार्थी कार्ड भी हैं।
बांग्लादेश और दिल्ली से पहुंचे हैं ये शरणार्थी
सरकारी सूत्रों का कहना है कि इनमें से कुछ लोग बांग्लादेश के रास्ते राज्य में आए हैं तो कुछ दिल्ली समेत देश के दूसरे शहरों से पहुंचे हैं। बारुईपुर के पुलिस अधीक्षक अरिजित सिन्हा कहते हैं कि पुलिस को रोहिंग्या शरणार्थियों की कालोनी के बारे में जानकारी है। उन सबके पास संयुक्त राष्ट्र का शरणार्थी कार्ड है। पुलिस ने राज्य सरकार को इसकी सूचना दे दी है। हुसैन गाजी कहते हैं कि संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल इस मुद्दे पर जल्दी ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर सरकारी सहायता की मांग करेगा। इलाके के संगठनों ने इन शरणाथिर्यों के बच्चों के मदरसों में पढ़ाई-लिखाई का भी इंतजाम कर दिया है। बीमारों के इलाज की भी व्यवस्था की गई है। कुछ रोहिंग्या शरणार्थी दैनिक मजदूरों के तौर पर भी काम करने लगे हैं।
कोर्ट के निर्देशों की प्रतीक्षा कर रही सरकार
इसबीच, राज्य सरकार ने कहा है कि वह बंगाल में शरण लेने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती। सरकार चाहती है कि रोहिंग्या मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के आधार पर केंद्र सरकार पहले कोई ठोस शरणार्थी नीति बनाए। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस मामले में बाल अधिकार सुरक्षा आयोग भी एक पक्ष है। इस मामले की अगली सुनवाई 31 जनवरी को है।
हमलावर हैं विपक्षी दल
दूसरी ओर, विपक्षी राजनीतिक दलों ने सरकार पर तुष्टिकरण की नीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। माकपा का कहना है कि इन शरणार्थियों की सहायता कर रहे संगठनों को तृणमूल के नेताओं का संरक्षण हासिल है। कांग्रेस ने भी सरकार पर अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए ही रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन करने का आरोप लगाया है।