बादल नहीं, ग्लेशियर की झीलें फटीं! धराली में सैलाब कैसे आया, जानिए साइंटिस्ट ने क्या बताया

उत्तराखंड के धराली गांव में 5 अगस्त 2025 को आई आपदा की एक वजह खीर गंगा नदी के ऊपरी कैचमेंट क्षेत्र में स्थित ग्लेशियर तालाबों का फटना हो सकता है. ये संभावना जताई है, भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर डीडी चुनियाल ने. उत्तराखंड की दून यूनिवर्सिटी में भूविज्ञान के विजिटिंग प्रोफेसर डीडी चुनियाल ने एक वीडियो में विश्लेषण करते हुए संभावना जताई है कि हो सकता है, भारी बारिश के कारण इन ग्लेशियर तालाबों में जलस्तर बढ़ गया हो और उनमें से कोई एक या ज्यादा तालाब टूट गए होंगे. ऐसा होने से भारी मात्रा में पानी, मलबे को लेते हुए तीव्र गति से नीचे की ओर बहा. इस मलबे ने निचले इलाके में नदी के बहाव को बाधित करते मकान, होटल, दुकानों समेत गांव को तबाह कर दिया.
ऊपर ग्लेशियर तालाबों की श्रृंखला
जहां धराली गांव स्थित है, उसके ऊपर पहाड़ों पर खीर गंगा नदी का जो कैचमेंट है, वहां ग्लेशियर तालाबों की एक श्रृंखला मौजूद है. प्रो डीडी चौनियल ने बताया कि उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में खीर गंगा का उद्गम बर्फीले ग्लेशियरों से होता है, जहां ऊपर छोटे-छोटे ग्लेशियल ताल और तालाब मौजूद हैं. अत्यधिक वर्षा और ग्लेशियर की धीमी पिघलन की वजह से ये ताल-तलैया अत्यधिक भर गए थे. इसी दौरान किसी एक ताल के टूटने से उसके बहाव ने नीचे के ताल को भी तोड़ा होगा, जिससे मलबे के साथ भारी मात्रा में पानी तेजी से बह निकला, जिसके बहाव ने बोल्डर, पेबल्स और ग्रेवेल सहित भारी मात्रा में मलबा भी बहाकर नीचे के गांव धराली में तबाही मचा दी.
नदी किनारे फ्लड प्लेन की संरचना खतरनाक
प्रो चुनियाल के मुताबिक, ये घटना साल 2013 की केदारनाथ आपदा जैसी ही है, जिसमें नदी के किनारे या फ्लड प्लेन पर बने गांवों को भारी नुकसान हुआ था. भू-आकृति विज्ञान के अनुसार, नदी के किनारे बनने वाले फ्लड प्लेन या रिवर टेरेस महीन और मोटे गाद-मिट्टी से बने होते हैं और लैंडस्लाइड, मलबा बहाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील होते हैं. पहाड़ी इलाकों में ऐसे स्थलों पर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट या मकान-दुकान वगैरह बनाना बेहद खतरनाक होता है.
केदारनाथ त्रासदी से नहीं लिया सबक
प्रोफेसर चौनियल ने 2013 की केदारनाथ त्रासदी को याद करते हुए कहा कि हमने उससे कोई सबक नहीं लिया. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि पहाड़ी इलाकों को सुरक्षित रखने के लिए नदियों और नालों के किनारे या फ्लड प्लेन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अतिक्रमण पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना चाहिए. भू-आकृति विज्ञान की दृष्टि से ये क्षेत्र अत्यंत असुरक्षित होते हैं क्योंकि यहां मलबा बहाव, धंसान, भूस्खलन जैसी घटनाओं का खतरा हमेशा बना रहता है.
पूर्वजों ने ध्यान रखा था, लेकिन…
उन्होंने यह भी बताया कि हमारे पूर्वजों ने कभी ऐसे अस्थिर और जोखिमपूर्ण स्थानों पर आवास नहीं बनाए थे. लेकिन आधुनिक समय में बिना उचित भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के, इन जगहों पर अतिक्रमण हुआ है. इसलिए विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि जियोलोजिकल और जियोस्पैशियल तकनीक के माध्यम से ऐसे संवेदनशील स्थानों का सर्वेक्षण कर के इन्हें ‘लाल निशान’ के रूप में चिन्हित करना होगा ताकि इन क्षेत्रों में कोई भी निर्माण कार्य या विकास न हो सके और निर्दोष लोग सुरक्षित रह सकें.