बाबरी विध्वंस हुआ तो चिंगारी भी नहीं सुलगी, 3 साल पहले ‘राम’ नाम पर मरे थे 1000 लोग
गिरधारी लाल जोशी
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में हुई घटनाओं की वजह से अफवाहें जरूर फैली थीं मगर पिछले हादसे से सबक लेते हुए भागलपुर के लोगों ने अफवाहों को गंभीरता से नहीं लिया था और फिर से धर्मांध होने से मना कर दिया था। हालांकि, उस वक्त भागलपुर साम्प्रदायिक दंगों के घाव अभी हरे ही थे। शरारती तत्वों ने इसी का फायदा उठाने की कोशिश की थी। बिहार में कुछ जगहों पर दंगे भी हुए मगर भागलपुर ने अमन-चैन की मिसाल कायम की थी। ध्यान रहे साल 1989 में भागलपुर साम्प्रदायिक ताकतों के हाथों का खिलौना बनकर धू-धू जल उठा था। शरारती तत्वों की वजह से एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। हजारों लोग बेघर हुए थे।
भागलपुर के धार्मिक स्थलों पर हमले हुए थे। 29 साल बाद भी उन मुकदमों का निपटारा नहीं हो सका है। इसके साथ ही दंगों की वजह से आजतक नुकसान का सही-सही आकलन भी नहीं हो पाया है। न ही कइयों की भरपाई हो पाई है। मल्लिका बेगम सरीखी को उसी कौम के फौजी ताज हसन ने तरस खाकर शादी की। बच्चे पैदा कर दिए। मुआवजे की मिली रकम हड़पकर फिर तलाक दे दिया। आज भी उस दर्द को याद कर उनकी आंखें आंसुओं से लबलबा जाती हैं। उसने सबौर के चंदेरी ग़ांव के वाकए में अपने परिजनों को खो दिया था। उसे भी दंगाइयों ने मरा समझकर जलकुंभी में फेंक दिया था। बता दें कि 24 अक्टूबर, 1989 को रामशिला पूजन जुलूस को लेकर शुरू हुआ दंगा महीनों तक चला था। भागलपुर का यह दंगा सदी का भीषणतम साबित हुआ था।
भागलपुर से चलीं ये शिलाएं अयोध्या तभी पहुंच गई थीं। 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचा भी ढहा दिया। इससे सारे देश में बबेला मच गया लेकिन भागलपुर शांत रहा। हाल ही में इस संवाददाता ने अयोध्या का दौरा किया है। वहां की राम गौशाला में प्रवेश करते ही बाएं तरफ एक कमरे में अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर का मॉडल तैयार पड़ा है। वहां देख-रेख करने वाले हजारीलाल ने इशारा कर बताया कि इसी तरह का रामलला का मंदिर बनेगा। मगर कब तक? पूछने पर वे बोले केंद्र में मोदी और यूपी में योगी अब तो बनना ही है। वरना…। वे थोड़ा अतिरंजित हो उठे।
खैर जो हो, हम बात कर रहे हैं 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या के बाद दंगा से तत्काल उबरे भागलपुर के हालात की। उस वक्त जो बाहर थे, वे भागलपुर में अपनों की खबर जानने को उत्सुक थे। उन्हें आशंका थी कि बीते दंगों के मद्देनजर इस दफा भी भागलपुर में भयानक कुछ हो रहा होगा। रोजाना रिश्तेदारों और शुभचिंतकों के फोन आ रहे थे और भागलपुर के लोग उन्हें बताते थे यहां सब कुछ सामान्य है। दंगा न होने होने देने के लिए अबकी यहां के लोग सचमुच कृतसंकल्पित थे। साहित्यकार शिवकुमार शिव, समाजसेवी हरिप्रसाद शर्मा, रामगोपाल पोद्दार, प्रकाश चंद्र गुप्ता, सलीम सुगंध, शाहिद अख्तर सरीखे दंगे को याद कर सिहर जाते हैं।
ऐसा भी नहीं था कि अयोध्या की घटनाओं का यहां बिल्कुल असर नहीं हुआ था। मुसलमानों ने दो रोज विरोध में दुकानें बंद रखकर काला दिवस मनाया था। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में हिंदुओं ने भी दुकानें बंद रखीं थी। पर लोगों ने आपस में टकराने की कोई गलती नहीं की। हालांकि, समाज के दोनों पक्षों को उकसाने वाले तब भी थे और अब भी। प्रशासन भी चौकस था मगर उसे शांति बनाए रखने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी।
दरअसल, ऐसा सामाजिक सद्भाव बनाने में भी वक्त लगा। 1989 के दंगा के बाद बढ़ी गुंडागर्दी और रंगदारी ने शांति के पहरुओं को ठेंगा दिखा दिया था। नतीजतन लोगों ने मोहल्ला स्तर पर कमेटियां बनाकर इनका मुकाबला किया। रात्रि पहरा से भी स्थिति सुधरी। गुंडों में खलबली मची। तब से कौमी दंगा की दुकान भागलपुर में हमेशा के लिए बंद हो गई है। 29 साल का तजुर्बा यही बताता है कि इस सिल्कनगरी में अब लोग दंगा का नाम सुनना भी पसंद नहीं करते हैं।