बिहार में सियासी ‘पैंतरेबाजी’ शुरू: पप्पू यादव, आनंद मोहन पर डोरे, जातीय संगठनों के भी भाव बढ़े

लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही अभी एक साल से ज्यादा की देरी हो, परंतु राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख और बिहार के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया लालू प्रसाद के चारा घोटाले के मामलों में जेल जाने के बाद राजनीतिक दलों ने अपने लाभ और हानि को देखते हुए पैंतरेबाजी शुरू कर दी है। राजद के नेता जहां अपने पुराने साथियों को फिर से अपनी ओर लाने को लेकर सब्जबाग दिख रहे हैं, वहीं भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल छोटे दल ‘दबाव की राजनीति’ के तहत भाजपा को आंखें दिखा रहे हैं।

वैसे, इन सब के बीच राजनीति दल के नेता सीधे कुछ भी नहीं बोल रहे हैं परंतु सभी बड़े दलों के नेताओं को अचानक छोटे दलों के प्रति ‘प्रेम’ जग गया है, ऐसे में वे छोटे दलों पर डोरे डालकर चुनावी मैदान के पहले उसे आजमा लेना चाह रहे हैं। कई जातीय संगठन भी अपनी ताकतें अभी से ही देखाना प्रारंभ कर दिया है। राजग में शामिल राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) के शिक्षा के मुद्दे को लेकर मानव कतार कार्यक्रम में राजद के नेताओं के शामिल होने के बाद बिहार में अटकलों का बाजार गरम हो गया। इस कार्यक्रम में भाग लेने पर राजद के नेता शिवानंद तिवारी तो कुछ खुलकर तो नहीं बोलते परंतु इतना जरूर कहते हैं कि यह शिक्षा के विषय को लेकर कार्यक्रम आयोजित था और इसमें भाग लिया।

मानव कतार में शामिल हुए राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी दो दिन बाद बिहार पीपुल्स पार्टी के संस्थापक और पूर्व सांसद आनंद मोहन से मिलने सहरसा जेल पहुंच गए।
राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह भी सांसद और जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव को राजद का ही करीबी बता कर उनपर डोरे डालने की कोशिश की है। यह दीगर बात है कि राजद के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने पप्पू के राजद में आने के किसी भी संभावना से इंकार कर रहे हैं।

इधर, जद (यू) के पूर्व अध्यक्ष शारद यादव भी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से रांची जेल में मिलकर बिहार की राजनीति को हवा दे दी। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के वरिष्ठ नेता वृषिण पटेल भी रांची जेल में लालू प्रसाद से मिलकर बिहार में नए समीकरण के संकेत दे चुके हैं। जद (यू) के नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी भी रांची जाकर लालू का हालचाल ली है। इधर, जीतन राम मांझी भी इशारों ही इशारों में अकेले चुनाव लड़ने की बात भी कह चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि पप्पू यादव राजद के की टिकट पर ही पिछला लोकसभा चुनाव जीते थे, और फिर उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली।

इधर, कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष पद से डा़ अशोक चौधरी को हटाए जाने के बाद से जद (यू) के पक्ष में बयानबाजी का सिलसिला थम गया है, लेकिन कांग्रेस विधान पार्षद रामचंद्र भारती 21 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा आयोजित मानव श्रृंखला कार्यक्रम में शामिल हुए। पार्टी लाइन की परवाह किए बिना वह मुख्यमंत्री की प्रशंसा में जुटे हैं।
ऐसे में जातीय संगठन भी अपनी ताकत दिखाने को आतुर है। निषाद विकास संघ के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने रविवार को यहां ‘एससी,एसटी आरक्षण अधिकार सह पदाधिकारी सम्मेलन’ में बड़ी संख्या में लोगों को जुटाकर अपनी शक्ति का एहसास करा दिया है।

सहनी आईएएनएस से कहते हैं कि निषादों के आरक्षण के लिए अब संघर्ष तेज करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि संघ के आान पर उमड़ा निषाद समाज बिहार में सियासी परिवर्तन का संकेत हैं। ‘सन अफ मल्लाह’ के नाम से चर्चित सहनी ने बिहार और केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इस साल जून तक निषाद समाज को आरक्षण नहीं मिलता है, तो पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसभा कर संगठन के द्वारा पार्टी की घोषणा की जाएगी तथा अगले लोकसभा चुनाव में बिहार में सभी 40 सीटों पर अपनी पार्टी के बैनर तले उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा जाएगा।
राजनीति के जानकार और पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि बिहार के सभी दलों के लिए अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण है। ऐसे में दल अपने गठबंधन को और मजबूत करना चाह रहे है, तो कुछ दल ‘दबाव की राजनीति’ कर रहे हैं। वैसे अभी बहुत कुछ कहना जल्दबाजी है परंतु इतना तय है कि अगले कुछ दिनों तक बिहार की राजनीति में जोड़-तोड़ देखने को मिलेगा।

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