बीजेपी-पीडीपी सरकार के दौरान 74 प्रतिशत ज्यादा लोग हो गए विकलांग, पैलेट गन के इस्तेमाल से बढ़ा ये आंकड़ा!

जम्मू-कश्मीर में इस वक्त राज्यपाल शासन लागू है। करीब तीन साल तक यहां भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार रही और इस दौरान यहां पत्थरबाजी और पत्थरबाजों के खिलाफ पैलेट गन के इस्तेमाल की कई घटनाएं हुईं। एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल बढ़ने से यहां इस गन के प्रभाव से शारीरिक रुप से विकलांग होने वाले लोगों की संख्या में 74 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। इन तीन सालों में जम्मू-कश्मीर के 10 अलग-अलग जिलों में करीब 31,085 लोगों पर पैलेट गन का कहर टूटा है। तीन साल पहले यह आकंड़ा 17,898 का था। आरटीआई से जो जानकारी मिली है वो साल 2017 तक के हैं।

पिछले छह सालों में कुपवाड़ा जिले में सबसे ज्यादा (10,825), अनंतनाग में (8,638) बारामूला में (7274) और पुलवामा में (5,461) लोग पैलेट गन के इस्तेमाल की वजह से विभिन्न लोग अलग-अलग तरह की शारीरीक परेशानियों से जूझ रहे हैं। डाटा के मुताबिक 2011 में राज्य में विकलांग लोगों की कुल संख्या 3 लाख 61 हजार 153 थी। जिसमें 56.7 प्रतिशत पुरुष और 43.2 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं। वहीं 2001 में यह संख्या 302,607 थी। जानकारी के मुताबिक ज्यादातर लोग कान से कम सुनाई देने की समस्या से पीड़ित थे।

2014 में संघर्ष की वजह से 1 लाख से ज्यादा लोग शारीरीक विकलांगता के शिकार हो गए। मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज का कहना है कि साल 2016 में पैलेट गन का इस्तेमाल काफी बढ़ा है जिसकी वजह से दिव्यांगों की संख्या काफी बढ़ी है। 2016 में 1 हजार से ज्यादा लोगों की आंखें पैलेट गन से निकलने वाले धुएं की चपेट में आने की वजह से खराब हो गईं और अब इनके ठीक होने की उम्मीद बहुत कम है।

राज्य से निकलने वाले एक दैनिक अखबार ‘ग्रेटर कश्मीर’ ने 8 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट में लिखा कि राज्य में आंखों की रोशनी खोने वाले लोगों की संख्या में 68.9 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। ‘इंडिया स्पेंड’ से बातचीत करते हुए अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुक ने कहा कि सरकार के पास इनकी मदद के लिए कोई नीति नहीं है, जबकि यह उनकी जिम्मेदारी है कि वो ऐसे लोगों की बेहतरी के लिए काम करें।

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