बीजेपी में आने से उलटा पड़ गया नरेश अग्रवाल का एक दांव, कंपीटिशन में छूटे पीछे
जब सपा सांसद नरेश अग्रवाल नई दिल्ली में बीजेपी ज्वॉइन कर रहे थे, तब उनके धुर-विरोधी नेता अशोक बाजपेयी एक कदम आगे जाकर बतौर बीजेपी उम्मीदवर लखनऊ मे राज्यसभा का नामांकन कर रहे थे। दोनों नेता हरदोई की सियासत से नाता रखते हैं और जिले की सियासत उनके इर्द-गिर्द घूमती है। हमेशा एक दूसरे पर दबदबा कायम करने की कोशिश ने कई बार आपसी हितों को लेकर उन्हें टकराव के मोड़ पर खड़ा किया है। संयोग रहा कि समाजवादी पार्टी के बाद अब भाजपा में भी दोनों नेता साथ-साथ राजनीति करने को मजबूर हैं। हालांकि मौके की नजाकत भांपकर फैसला लेने में माहिर नरेश अग्रवाल सपा में बाद में चलकर उनसे कहीं ज्यादा प्रभावशाली साबित हुए। नरेश जहां अखिलेश सरकार में बेटे को मंत्री बनवाने में सफल रहे तो खुद सपा के टिकट पर राज्यसभा गए। जबकि अशोक बाजपेयी सपा में एमएलसी तक सीमित रहे। मगर बीजेपी में शामिल होने और लाभ उठाने के मामले में फिलहाल नरेश पर उनके प्रतिद्वंदी अशोक बाजपेयी कहीं बढ़त बनाते दिख रहे है।
नरेश के लिए क्या हैं संभावनाएंः मगर बीजेपी में पकड़ बनाने के फेर में नरेश अग्रवाल का दांव उल्टा मालुम पड़ता है। उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करने में शायद देरी की। यही वजह है कि सोमवार(12 मार्च) को जब नरेश अग्रवाल दिल्ली में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने की तैयारी कर रहे थे, उससे पहले ही अशोक वाजपेयी लखनऊ में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कर चुके थे। बीजेपी के टिकट पर उनका राज्यसभा जाना तय है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिस तरह से नरेश अग्रवाल हमेशा सत्ता के साथ खड़े दिखते हैं, मगर इस बार पाला बदलने में कुछ देरी कर बैठे। यही वजह है कि जिले की सियासत और बीजेपी में अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी अशोक बाजपेयी से दबदबा कायम करने में पिछड़ गए। नरेश अग्रवाल का अगले महीने राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। ऐसे में कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें संसद की कार्यवाही टेलीविजन पर ही देखनी पड़ेगी। यूपी से राज्यसभा जाने के रास्ते रास्ते बंद हो गए हैं। अब आगे सिर्फ विधानपरिषद के चुनाव होने हैं या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव। इसकी उम्मीद कम ही है कि दो बार के राज्यसभा सदस्य होने और अपने कद को देखते हुए नरेश अग्रवाल विधान परिषद सदस्य बनना मंजूर करेंगे। कयास लग रहे हैं कि भाजपा उन्हें हरदोई से 2019 के लोकसभा चुनाव में उतार सकती है।
मुलायम के भरोसेमंद रहे हैं वाजपेयीः यूं तो अशोक वाजपेयी ने कॉलेज के दिनों में एबीवीपी से राजनीति शुरू की, मगर बाद में वे मुलायम सिंह यादव के भरोसेमंद सिपहसालार बने। 1977 में पहली बार बाजपेयी जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे तो उच्च शिक्षा व पर्वतीय विकास मंत्री बने। 1980 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए थे। फिर 1985 में दोबारा विधायक बने। चार साल बाद 1989 में मुलायम सिंह सरकार में शिक्षा मंत्री बने। फिर मुलायम सिंह के साथ मिलकर समाजवादी पार्टी के गठन में योगदान दिए। पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शुमार हुए। 1992 और 1996 में जीत का सेहरा सिर पर बंधा। 2003 में जब मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो खाद्य आपूर्ति और बाद में धर्मार्थ कार्य मंत्री बनाए गए। इसके बाद 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में उन्हें लगातार हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के संस्थापक सदस्य होने और लंबे समय से जुड़ाव के चलते सपा ने 2016 में विधान परिषद भेजा। फिर बाजपेयी ने हवा का रुख भांपते हुए 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी से जुड़ना पसंद किया। उनके आने पर हरदोई में बीजेपी को फायदा भी हुआ। आठ में से सात सीटें बीजेपी के खाते में मिली। जिसके बाद माना जा रहा था कि सपा से आए इस बड़े नेता का कद भी बीजेपी बढ़ा सकती है। वही हुआ भी। अब डॉ. अशोक बाजपेयी के बीजेपी से राज्यसभा जाने का रास्ता साफ हो गया है।
सत्ता के साथ हो लेते हैं नरेश अग्रवालः चार दशक की राजनीति में नरेश अग्रवाल चार दलों मे जा चुके हैं। वहीं एक बार कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर खुद लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी बना चुके हैं। कांग्रेस से 1980 में पहली बार हरदोई सीट से विधायक बने। इसके बाद छह बार और विधायक बने। 2007 में सपा के टिकट पर सातवीं बार विधानसभा चुनाव जीते थे, मगर बसपा में जाने के बाद इस्तीफा देकर बेटे नितिन को चुनाव लड़वाकर विधायक बनवाए। 2010 में बसपा के टिकट पर राज्यसभा गए, फिर 2011 में सपा में शामिल हो गए। बेटे को अखिलेश सरकार में मंत्री बनवाया और खुद सपा के टिकट पर दोबारा राज्यसभा गए। नरेश अग्रवाल मुलायम सिंह की सपा सरकार और बीजेपी में कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह सराकर में मंत्री रह चुके हैं।