बीस विधायकों की सदस्यता जाने के बाद बड़ी चुनौती, आप के सामने पथरीली राह
अजय पांडेय
लाभ के पद के मामले में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों को अयोग्य ठहरा दिए जाने के बाद दिल्ली के 20 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने की प्रबल संभावना है। चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद अब कोर्ट के फैसले का इंतजार हो रहा है। यदि इन विधायकों को राहत नहीं मिली तो उपचुनाव तय है। अभी आप के पास 46 विधायक हैं। चुनाव हुए और यदि पार्टी सभी 20 सीटें हार भी गई तो भी सरकार बेखटके चलती रहेगी। जाहिर है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के तमाम लोगों को सरकार की सेहत की चिंता नहीं है। लेकिन राजनीतिक पंडितों का मत है कि इस सबके बीच केजरीवाल को अपने दरकते जनाधार और अपने लोकप्रियता कम होने की चिंता जरूर सता रही होगी। आप के बागी विधायक कपिल मिश्रा अभी से कह रहे हैं कि पार्टी ने आंतरिक सर्वे कराया है जिसमें इन सभी 20 सीटों पर उसे अपनी हार नजर आ रही है।
पांच साल केजरीवाल, यह नारा करीब तीन साल पहले वर्ष 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में खूब चला। इसके पीछे संदेश यही था कि अब केजरीवाल पहले कार्यकाल की तरह 49 दिन में सरकार की बागडोर छोड़कर नहीं भागने वाले। पार्टी जनता को यह समझाने में कामयाब रही कि केजरीवाल के पास हुकूमत करने और बदलाव करने वाली जादू की जो छड़ी है, उसे घुमाने का उन्हें मौका ही नहीं मिला। परिणाम यह हुआ कि आप को सूबे की 70 में से 67 सीटें मिल गईं, लेकिन बीते तीन साल में सरकार के कामकाज पर सवाल भी उठे। राजौरी गार्डन उपचुनाव में पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंच गई। दिल्ली नगर निगम के चुनाव में उसके सारे दावे की हवा निकल गई।
अब जिन 20 विधानसभा क्षेत्रों के विधायकों की कुर्सी जा रही है उनमें शायद ही कोई विधानसभा क्षेत्र हो जहां पर निगम चुनाव की दृष्टि से आप को जनता ने बहुमत दिया हो। बवाना विधानसभा के उपचुनाव में उसे जीत जरूर मिली लेकिन वहां भी उसका वोट आधा रह गया।
विधानसभा और नगर निगम के चुनाव में मिले मतों की बात करें तो कांग्रेस आठ फीसद से 25 फीसद तक पहुंच गई और आप 54 फीसद से 28-29 फीसद पर पहुंच गई। सवाल है कि आखिर तीन साल में ऐसा क्या हो गया कि केजरीवाल और उनकी पार्टी पर जमकर प्यार उड़लने वाले दिल्ली के लोग एकदम से उनके खिलाफ हो गए।
भ्रष्टाचार में घिरे कुछ नेता
तीन साल में आप की दिल्ली सरकार के आधे मंत्री अलग-अलग तरह के भ्रष्टाचार के आरोप में बाहर कर दिए गए। किसी भी पर फर्जी डिग्री का आरोप लगा तो किसी पर रिश्वत लेने का तो किसी पर ‘राशन कार्ड’ बनवाने का। मंत्रियों पर सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज किए, चंदे में गड़बड़ी के आरोप लगे और अब राज्यसभा के चुनाव में बागी विधायक कपिल मिश्रा से लेकर विपक्षी सांसद प्रवेश वर्मा तक ने करोड़ों रुपये में पार्टी के टिकट बेचने के आरोप लगाए। योगेन्द्र यादव ने कहा कि अब तक वे यह मानते रहे कि केजरीवाल में तमाम कमियां हो सकती हैं पर वे भ्रष्ट नहीं हो सकते। लेकिन राज्यसभा टिकट बंटवारे के बाद उन पर लगे आरोपों के मद्देनजर वे अपने पुराने बयान पर शर्मिंदा हैं।
काम का सिर्फ ढिंढोरा!
दूसरी ओर विकास के नाम पर इन तीन वर्षों में कुछ नहीं हुआ। शीला दीक्षित सरकार ने जिन फ्लाईओवरों का निर्माण शुरू कराया था, उनका फीता काटकर आप सरकार पीठ ठोक रही है। शिक्षा-सेहतके क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन के दावे सरकार रोज करती है। विपक्ष बार-बार यह आरोप लगा रहा है कि सच यही है कि तीन साल में दिल्ली सरकार राजनिवास और केंद्र सरकार से लड़ने में व्यस्त रही है और अब जबकि एक बार फिर चुनाव की नौबत आ गई है तो वह बताना चाहती है कि उसे काम करने ही नहीं दिया गया।र