बृहदेश्वर मंदिर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल, जानें भारत के अन्य प्राचीन मंदिरों की विशेषता

दुर्गा मंदिर, वाराणसी- काशी के पुरातन मंदिरों में से एक दुर्गा मंदिर भी है। काशी खंड में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। 18 वीं शताब्दी में लाल पत्थरों से बने अति भव्य इस मंदिर में एक तरफ दुर्गा कुंड भी है। वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली की नागरा शैली को दर्शाता है। इस मंदिर में माता दुर्गा यंत्र के रुप में विराजमान है। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मी, सरस्वती और काली माता की मूर्ति विराजमान है।

बृहदेश्वर मंदिर, तमिलनाडु- बृहदेश्वर और बृहदीश्वर मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित है। 11 वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। ग्रेनाइट से बना ये पहला और एकमात्र मंदिर माना जाता है। यूनेस्को की धरोहर में शामिल इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बने हैं। इस मंदिर को भगवान शिव को समर्पित किया गया है। इस मंदिर की निर्माण कला की विशेषता है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती है।

मुंडेश्वरी मंदिर, बिहार- बिहार के भभुआ जिले केंद्र से चौदह कि.मी दक्षिण-पश्चिम में कैमूर की पहाड़ी स्थित है। साढ़े छह सौ फीट की ऊंचाई वाली इस पहाड़ी पर माता मुंडेश्वरी और महामण्डलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना 108 ई. में मानी जाती है। माता मुंडेश्वरी को माता पार्वती का रुप और महामण्डलेश्वर को भगवान शिव का रुप माना जाता है। देश के प्राचीनतम मंदिरों में इस मंदिर को शामिल किया जाता है।

वेंकटेश्वर मंदिर, आंध्र प्रदेश- तिरुपति शहर में स्थित विष्णु मंदिर वेंकटेश्वर का निर्माण 10वीं सदी का माना जाता है। यह विश्व का सबसे बड़ा और प्राचीन स्थल माना जाता है। दक्षिण भारतीय वास्तु कला और शिल्प कला का यह मंदिर अद्भुत उदाहरण है। मान्यता है कि इस मंदिर की परछाई नहीं दिखाई देती है। इस मंदिर में आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में होती है।

लिंगराज मंदिर, उड़ीसा- भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में शालिग्राम के रुप में भगवान विष्णु भी यहां मौजूद है। 11 वीं सदी में बने इस मंदिर की वास्तुकला देखने योग्य है। लिंगराज मंदिर के बाहर से देखने पर मंदिर चारो तरफ से फूलों के मोटे गजरे पहने हुए दिखाई देता है।

 

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