बेबाक बोलः राजका- जी हुजूर…

राजतंत्र के अवशेष देखने और समझने के लिए भारतीय राजनीतिक दलों के लोकतंत्र से बेहतर कुछ नहीं है। भारतीय जनता पार्टी जैसी काडर आधारित पार्टी भी एक व्यक्ति की छवि पर चल रही है। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों का ढांचा व्यक्तिपरक है। या तो राजा का बेटा या जो राजा जैसा शक्तिशाली दिखे, बाहुबली, 56 इंच का सीना। लोकतंत्र की हत्या की जा रही है, यह विलाप हर विपक्षी पार्टी करती है लेकिन सत्ता में आते ही एक व्यक्ति के बोल को ही पूरा लोक समझा जाने लगता है। भारत के ज्यादातर राजनीतिक दलों का आंतरिक तंत्र व्यक्तिपरक ही है। क्षेत्रीय दलों का भी इतना ही बुरा हाल है जहां बहुजन समाज पार्टी का मतलब मायावती और तृणमूल कांग्रेस का मतलब ममता बनर्जी। चूंकि चुनाव की तारीख कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए तय की गई है तो इस बार का बेबाक बोल लोकतंत्र के कांग्रेसी शहजादे पर। इन दिनों ये भारतीय लोकतंत्र के दूत बने हुए हैं और पार्टी के आंतरिक चुनावों के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पद का ताज पहनने वाले हैं।

लालू के लाल और लोकतंत्र

लालू यादव एक बार फिर राजद के अध्यक्ष बन गए, लगातार छठी बार। इससे उन लोगों को झटका लगा होगा जो सोच रहे थे कि कानूनी फंदों में फंसे लालू इस बार पार्टी की कमान अपनी पत्नी राबड़ी को सौंप देंगे। अलबत्ता एक एलान उन्होंने जरूर कर दिया कि अगला चुनाव पार्टी उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव की अगुआई में लड़ेगी। नीतीश की महागठबंधन सरकार में लालू ने मंत्री तो अपने दोनों बेटों को बनवाया था। पर हैसियत छोटे तेजस्वी की ज्यादा थी। उपमुख्यमंत्री होने के नाते वे सरकार में नंबर दो कहलाते थे। जो भी हो, राजद है तो लालू की कुनबा पार्टी ही। पर अच्छा हो कि वे अपने बेटों को लोकतांत्रिक भाषा सिखाएं। बड़े बेटे तेज प्रताप का अपनी जुबान पर कोई काबू नहीं। अचानक बयान दे दिया कि वे बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को घर में घुसकर मारेंगे। लोगों को इससे ज्यादा अचरज तो यह देखकर हुआ कि लालू ने इस बदजुबानी के लिए मोदी से माफी मांगना तो दूर अपने बेटे को डांटा-फटकारा तक नहीं। यह भी अपने तरह का लोकतंत्र है।

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