भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार, ऐसे की थी सृष्टि की रक्षा
भगवान विष्णु से जुड़े हुए तमाम प्रसंग बड़े ही प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक है उनके द्वारा मत्स्य रूप धारण करने का प्रसंग। इस प्रसंग का जिक्र विष्णु पुराण में किया गया है। बताया जाता है कि विष्णु जी ने कुल 10 रूप धारण किए थे। इनमें से पहला रूप मत्स्य का था। विष्णु जी ने यह रूप उस वक्त धारण किया था जब धरती पर प्रलय आने वाली थी। कहते हैं कि इस सृष्टि की रक्षा के लिए उन्होंने ऐसा किया था। सत्यव्रत मनु से धरती पर मनुष्य की उत्पत्ति होने की बात कही जाती है। मनु जी धर्मात्मा और विष्णु के भक्त थे। एक दिन मनु के नदी में स्नान करते वक्त उनके कमंडल में एक मछली आ गई।
मनु इस मछली को लेकर अपने राजमहल लौट गए। मछली का आकार असाधारण रूप से बढ़ने लगा। इसके बाद मनु ने इसे नदी में छोड़ दिया। उस वक्त उन्होंने उस मछली से उसका असल रूप जानना चाहा। तब विष्णु जी मछली से प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि आज से सात दिन बाद प्रलय आने वाली है और सृष्टि की रक्षा के लिए मैंने मछली रूप धारण किया है। इसके बाद विष्णु के आदेश पर एक बड़ी सी नाव बनाई गई जिसमें औषधि और बीज रखे गए। ऐसा प्रलय के बाद सृष्टि के निर्माण के लिए किया गया।
प्रसंग के मुताबिक विष्णु ने धनु से कहा कि प्रलय के वक्त आप नाव को मेरी सूंड में बांध दीजिएगा। इसके बाद धनु अपने परिवार के साथ नाव पर सभी जरूरी सामान लेकर सवार हो गए। बताया जाता है कि प्रलयकाल के वक्त तक विष्णु जी मत्स्य अवतार में महासागर में तैरते रहे। इस दौरान उन्होंने अपने मुख में चारों वेदों को भी दबाए रखा। और जब पुन: सृष्टि का निर्माण हो गया तो उन्होंने वेदों को ब्रम्हा जी को सौंप दिया। इस तरह से विष्णु जी ने मत्स्य अवतार धरकर प्रलय काल के वक्त सृष्टि की रक्षा की थी।