भगवान सूर्य की दो संतानें- यम और यमुना, दोनों भाई-बहन के मिलन का अवसर है भैया दूज
दीपावली के ठीक दो दिन बाद पूरे भारत में मनाया जाने वाला भैया दूज एक गहरी आस्था का पर्व माना जाता है। आज शनिवार (21 अक्तूबर) को भाई-बहन के अटूट और पवित्र रिश्ते को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनाया जा रहा है। कीर्तिक मास के दूसरे दिन दूज मनाए जाने का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। यह अलग बात है कि विविधताओं से परिपूर्ण भारत देश में अलग-अलग नाम से इस पर्व को पुकारा जाता है मगर मकसद सबका एक है। बंगाल में इसे लोग भाई पोटा तो पूरब, उतर-पूरब में भाई दूज के नाम से जानते हैं।
हाल ही में संवाददाता ने सपरिवार उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा की है। इस दौरान बड़कोट (उत्तरकाशी) के यमुनोत्री जाने के दौरान श्री यमुनोत्री मंदिर समिति के सचिव पंडित कुशेश्वर उनियाल से मुलातात हुई। उन्होंने ही मंदिर पहुंचने पर श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना कराई। उन्होंने ही हमें भाई दूज के असली महत्व का ज्ञान कराया। यों हरेक साल यह पर्व मनाते ही आ रहे थे। मगर यमराज और यमुना के भाई-बहन की कहानी से अवगत उन्होंने ही कराया। पुराणों में लिखी बातें आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक हैं। ऐसे त्योहार पर ही इसकी सार्थकता का पता चलता है।
कथा के अनुसार सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं। पुत्र मृत्यु के देवता यम और पुत्री यमुना थी। इन दोनों भाई-बहन में आपस में अपार स्नेह था। ब्याह के बाद बहुत लंबे अरसे तक भाई-बहन की मुलाकात नहीं हुई। यमुना भाई को बराबर निवेदन भेजती रही कि वह किसी दिन उसका आतिथ्य स्वीकार करे। काम की अधिकता की वजह से यमराज कभी बहन के लिए समय नहीं निकाल सके। आखिरकार बहन के लगातार आग्रह को वे टाल नहीं सके और कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को वे बहन के घर पहुंचे। यमुना ने तहेदिल से भाई का स्वागत किया। प्रस्थान के समय बहन के स्नेह और सत्कार से प्रसन्न यम ने यमुना से वरदान मांगने को कहा। यमुना ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। उसने दुनिया की तमाम बहनों के लिए यह वरदान मांग लिया कि आज के दिन जो भाई अपनी बहन के ससुराल में यमुना के जल या बहन के घर में स्नान कर उसके हाथों से बना भोजन करे, उसे यमलोक का मुंह नहीं देखना पड़ेगा।
यम और यमुना की यह पौराणिक कथा किंवदंती भले ही लगे लेकिन इस कथा के अंदर की भावनाएं कतई काल्पनिक नहीं है। इस कथा के पीछे हमारे पूर्वजों का उद्देश्य यह रहा होगा कि भैया दूज के बहाने ही सही, भाई साल में एक बार भी अपनी प्रतीक्षारत बहन के ससुराल जाकर उससे जरूर मिलें। बरस भर बाद भाई-बहन मिलेंगे तो यह रिश्ता और प्रगाढ़ होगा। बचपन और किशोरावस्था की यादें ताजा होंगी। बीती स्मृतियां बोलेंगी। प्रेम भी बरसेगा, उलाहने भी। हंसी भी छूटेगी और आंसू भी टपकेंगे। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस दिन बहनें भाइयों को मिठाई के साथ ‘बजरी’ अर्थात कच्चे मटर या चने के दाने भी खिलाती हैं। ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा अपने भाइयों को बज्र की तरह मजबूत बनाने की होती है। संध्या के समय वे यमराज के नाम से दीप जलाकर घर के बाहर रख देती हैं। यदि उस समय आसमान में कोई चील उड़ता दिखाई दे तो माना जाता है कि भाई की लंबी उम्र के लिए बहन की दुआ कबूल हो गई है।
कहते हैं आज के दिन जिस किसी की मृत्यु होती है तो वह सीधे परलोक जाता है। कारण कि आज के दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर गया होता है। इतना ही नहीं यमुनोत्री का महत्व चारधाम में एक धाम इस वजह से भी है कि यहां जाकर जो स्नान कर पुण्य कमाता है उसके लिए भी यमराज दयावान रहता है और वह भी सीधे स्वर्ग जाता है। तभी चारधाम में सबसे कठिन यात्रा यमुनोत्री की ही है। इस बात में कितना दम है यह तो मृत्यु के बाद ही पता चलेगा। मगर भौतिक युग में यह अटूट रिश्ता निभाने की अहम भूमिका जरूर अदा कर रही है यह किंवदंतियां ।