भाजपा ने चुनाव को युद्ध का मैदान बनाया
गुजरात विधानसभा चुनाव को भाजपा युद्ध की तरह लड़ रही है। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात को गुजरात के सभी 182 विधानसभा सीटों के 50,128 बूथों पर ‘चाय के साथ चर्चा’ नाम से कार्यक्रम में सुना गया। पूरे राज्य में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, वरिष्ठ मंत्री अरुण जेतली, महामंत्री रामलाल समेत ज्यादातर राष्ट्रीय नेता कार्यक्रम में मौजूद थे। दूसरे दिन सोमवार से प्रधानमंत्री की सभाएं शुरू हो गई। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के लिए यह चुनाव कितना महत्त्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री हर पांचवीं विधानसभा सीट पर सभा करने वाले हैं। उनकी रैलियों का सिलसिला 12 दिसंबर को दूसरे चरण के चुनाव प्रचार समाप्त होने तक चलने वाला है। इस चुनाव में देश भर के भाजपा के सभी प्रमुख नेता लगने वाले हैं।
नोटबंदी के बाद तो भाजपा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों का चुनाव जीत चुकी है लेकिन जीएसटी लागू करने के बाद प्रधानमंत्री का यह पहला चुनाव है। इससे पहले हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे भी 18 दिसंबर को गुजरात के साथ आएंगे। देश में पहली बार कपड़ा पर बिक्री कर (जीएसटी) लगा है, जिसका भारी विरोध देश भर में और खास करके गुजरात में सूरत में हुआ।
दूसरे, गुजरात में भाजपा नरेंद्र मोदी के प्रदेश में सक्रिय रहे बिना सालों बाद चुनाव लड़ रही है। गुजरात में करीब 22 साल से (बीच में भाजपा बागी शंकर सिंह बाघेला आदि का शासन मिलाकर) भाजपा शासन में रही है। भाजपा के पटेलों में सबसे असरदार नाम केशुभाई पटेल की अगुवाई में 1995 में भाजपा की पहली सरकार बनी लेकिन शंकर सिंह वाघेला की बगावत से उनकी सरकार साल भर ही चल पाई। वैसे वे दोबारा 1998 में मुख्यमंत्री बने लेकिन गुजरात में भाजपा मजबूत हुई नरेंद्र मोदी के 2001 में मुख्यमंत्री बनने के बाद। भाजपा का मोदी को मुख्यमंत्री बनाने के प्रयोग सफल रहा। वे 2014 में देश के प्रधानमंत्री बनने तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने इस मिथक को भी तोड़ा कि गुजरात में पटेलों के अलावा किसी बिरादरी का नेता ठीक से राज कर ही नहीं सकता। गुजरात दंगों ने मोदी की छवि खराब की लेकिन उनके शासन के विकास कार्यों ने भाजपा को पांव जमाने का मौका दे दिया। इसी का परिणाम रहा कि इस चुनाव में भाजपा को कांग्रेस व पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के अलावा ओबीसी वर्ग के नेता के रूप में उभरे अल्पेश ठाकौर और दलितों के नेता जिग्नेश मेवाणी की तिकड़ी ज्यादा नुकसान करती नहीं दिख रही है। उसमें हार्दिक पटेल के अलावा बाकी दोनों तो कांग्रेस के पक्ष में ज्यादा कुछ कर ही नहीं पाए।
चुनाव की सारी कमान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पास है। वे देश भर में यात्राओं का सिलसिला रोक कर गुजरात में जमे हुए हैं। कहने के लिए शाह ने मिशन 150 घोषित कर रखा है लेकिन अभी की 116 सीट भी लाना भाजपा के कई नेता खुद चुनौती मान रहे हैं इसीलिए 27 नवंबर से प्रधानमंत्री मोदी की अनेक रैलियां आयोजित कराने और शहरी क्षेत्र में रोड शो करने की योजना बनाई गई। गुजरात चुनाव में प्रथम चरण के चुनाव के लिये नामांकन पत्र भरने की अंतिम तिथि 21 नवंबर और दूसरे चरण के चुनाव के संदर्भ में नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि 27 नवंबर थी । गुजरात में 182 विधानसभा सीटों के लिए 9 और 14 दिसंबर को दो चरणों में चुनाव होंगे। वोटों की गिनती 18 दिसंबर को होगी। मोदी पिछले करीब आठ महीने में 10 बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लगातार गुजरात का दौरा करते रहे हैं। शाह ने 4 से 9 नवंबर तक राज्य का दौरा किया था और अपने छह दिवसीय प्रवास के दौरान प्रदेश के विभिन्न इलाकों का दौरा करने के साथ ही जिला प्रभारियों एवं अन्य नेताओं के साथ चर्चा की। भाजपा अध्यक्ष ने घर-घर जाकर लोगों से सम्पर्क करने के अभियान में भी हिस्सा लिया । वे तब से गुजरात में ही जमे हुए हैं।
भाजपा ने इसके साथ ही पन्ना प्रमुखों को भी लोगों से सम्पर्क करने और पार्टी के कार्यक्रम के बारे जानकारी देने और विपक्ष के दुष्प्रचार के बारे में जागरूक करने का दायित्व सौंपा है। इन पन्ना प्रमुखों को मतदाता सूची के पन्ने के आधार पर तैयार किया गया है । राज्य में 50 मतदाताओं पर एक पन्ना प्रमुख बनाया गया है । वैसे भाजपा के आक्रामक चुनाव प्रचार के पीछे ही पार्टी नेताओं को यह भी महसूस हो रहा है कि पार्टी अपनी जीत के प्रति निश्चिंत नहीं है। यह तब है भाजपा के वोट पर असर करने वाले शंकर सिंह बाघेला ठीक से चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं। कोई और दल चुनाव मैदान में अपनी ढंग की हाजिरी भी नहीं लगा पाएगा। इस बार भी मुकाबला सीधे कांग्रेस और भाजपा में ही है। भाजपा ने व्यापारियों के डर से ही जीएसटी में भारी बदलाव किया और भाजपा के जिम्मेदार नेता बार-बार दोहरा रहे हैं कि जरूरत हुई तो उसमें और बदलाव करेंगे। जितनी बड़ी संख्या में भाजपा के नेता और केंद्र सरकार के मंत्री इस बार गुजरात चुनाव में लगे हुए हैं उतने किसी भी चुनाव में न तो पहले भाजपा ने लगाए थे और न ही किसी दल ने लगाए। इतना ही नहीं किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में किसी प्रधानमंत्री की यह रेकॉर्ड सभा होगी। करीब दो हफ्ते तक प्रधानमंत्री की हर रोज तीन से चार सभा पहले कभी भी किसी राज्य में नहीं हुई होगी।
कहने के लिए खुद प्रधानमंत्री की सक्रियता और उनके नाम पर चुनाव लड़ने से गुजरात भाजपा की स्थानीय गुटबाजी कम हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज पटेल नेता केशुभाई पटेल की सक्रियता से जहां भाजपा को लाभ हो सकता है वहीं पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के चुनाव न लड़ने को उनकी नाराजगी से जोड़ा जा रहा है। बावजूद इसके भाजपा की तैयारी कांग्रेस से ज्यादा मजबूत दिख रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ने के बावजूद भाजपा नेता उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले नहीं मान रहे हैं। यही हाल कांग्रेस और भाजपा के स्थानीय नेताओं का है। 22 साल सत्ता से दूर रहने के बावजूद कांग्रेस की गुटबाजी भाजपा से कम नहीं है, इसका लाभ भाजपा को मिलता दिख रहा है। इसके बावजूद भाजपा नेता चुनाव जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इसे प्रधानमंत्री के राजनीतिक भविष्य तक से जोड़ा जाने लगा है।