भाजपा सांसद ने सुप्रीम कोर्ट में दी अर्जी, अयोध्या में मिले पूजा का अधिकार
उच्चतम न्यायालय ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी से आज कहा कि वह अयोध्या के विवादित स्थल पर पूजा करने का अधिकार दिलाने की मांग करने वाली अपनी याचिका का उल्लेख , क्या मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है, के सवाल पर शीर्ष अदालत का फैसला आने के बाद करे। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने राम जन्मभूमि – बाबरी मस्जिद विवाद के मुसलमान समूह की याचिका पर अपना फैसला 20 जुलाई को सुरक्षित रख लिया था। याचिका में समूह ने अनुरोध किया था कि न्यायालय मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है बताने वाले अपने 1994 के फैसले की बड़ी पीठ से समीक्षा कराए। प्रधान न्यायाधीश के अलावा , न्यायमूर्ति ए . एम . खानविलकर और न्यायमूर्ति डी . वाई . चन्द्रचूड़ की पीठ ने स्वामी से कहा कि वह इस मामले में फैसला आने के बाद उचित तरीके से अपनी याचिका सूचीबद्ध कराते हुए उस पर जल्दी सुनवाई का अनुरोध करें।
स्वामी ने न्यायालय से पूजा करने का अपना अधिकार जल्दी दिलाने का अनुरोध किया था।
पिछले दिनों भी राम मंदिर और मस्जिद के मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपीलें दायर की गई थीं। दलील में एक याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि जिस प्रकार अफगान तालिबान ने बामियान बुद्ध की प्रतिमा तोड़ी, उसी प्रकार हिंदू तालिबान ने छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मजिस्द गिराई। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की पीठ को बताया, “जिस प्रकार अफगान तालिबान ने बामियान बुद्ध की प्रतिमा तोड़ी, उसी प्रकार हिंदू तालिबान ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया।
धवन ने कहा, “किसी मत को मजिस्द ध्वस्त करने का अधिकार नहीं है।” उन्होंने यह बात हिंदू पक्षकार की दलील का प्रतिकार करते हुए कही। धवन ने कहा, “यह दलील नहीं होनी चाहिए कि इसमें कोई इक्वि टी नहीं और एक बार इसे ध्वस्त किए जाने के बाद इसपर फैसला करने के लिए कुछ बचा ही नहीं है। धवन ने यह बात तीन न्यायाधीशों की पीठ से कही। उन्होंने दलील में आगे कहा कि शीर्ष अदालत ने अपने 1994 के फैसले में कहा था कि नमाज अदा करना इस्लाम की आवश्यक प्रथा नहीं है, इसपर दोबारा विचार करने की जरूरत है।