भोपाल में 150 शव वाहन खा रहे हैं ‘जंग’ ! सवाल- कब तक गरीब कंधे पर, ठेले पर या कचरा वाहन में ढोएंगे लाशें?

भोपाल के मिसरोद में एक मैदान में 150 से ज़्यादा शववाहन वैन धूप-बारिश में खड़े-खड़े जंग खा रहे हैं.दरअसल तीन महीने पहले ‘शासकीय शव वाहन ‘ के तहत गरीबों को सम्मानजनक अंतिम यात्रा देने का वादा सरकार ने किया था, लेकिन अभी तक कोई वाहन सड़क पर नहीं उतरा. ये हालत तब जबकि उनका प्रशिक्षण पूरा हो चुका है, टेंडर हो चुके हैं—फिर भी सब रुका है. इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं…एक सवाल तो यही है कि क्या राजनीतिक लॉन्च का इंतज़ार किया जा रहा है. सबसे बड़ा सवाल ये है—क्या मुक्ति वाहन मुक्ति देंगे या सिर्फ राजनीति की सवारी बनेंगे?
बारिश तेज़ थी. सड़क पर पानी बह रहा था और उस पानी को चीरती हुई एक मोटरसाइकिल चली जा रही थी पीछे एक लड़के की लाश बंधी थी. 15 साल का था वो जिसने विदिशा ज़िले में सिरोंज के राजीव गांधी अस्पताल में दम तोड़ दिया. उसकी मां चुप थी, पिता की आंखें पत्थर हो चुकी थीं. अस्पताल से बार-बार गुहार लगाई गई, “कोई शव वाहन दे दो साहब!” लेकिन जवाब था, “नहीं है!” अंत में, बेटे को दोपहिए पर लादकर गांव ले जाया गया धूप नहीं थी, लेकिन शर्म थी, ये मामला 10 दिन पुराना है. मार्च में मैहर की घटना भी याद करिए एक शव को पुलिसकर्मियों ने कचरा वाहन में लादकर अस्पताल भेजा. लोग चिल्लाए, पुलिस पर सवाल उठे, लेकिन व्यवस्था के कान वही थे जो सुनते नहीं.
दूसरे शब्दों में कहें तो मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य अब सेवा नहीं, शोक बन गया है. कभी कंधे पर लाशें जाती हैं, कभी ठेले पर, कभी खाट पर. शहर बदलते हैं, तस्वीरें नहीं.
हम ये खबर बार-बार उठाते हैं इस उम्मीद में कि शायद कभी कोई शर्मिंदगी होगी, कभी कोई जागेगा पर यह नींद राजनीति की है जो सिर्फ उद्घाटन की तारीख से जागती है.
भोपाल के मिसरोद में एक खुला मैदान है न कोई नाम, न पहचान. वहां कतार में खड़े हैं 150 से ज़्यादा शव वाहन वैन. तकनीकी रूप से सुसज्जित, चमचमाती, पर कीचड़ में फंसी. हमें बताया गया था कि‘शासकीय शव वाहन ‘ के तहत खरीदी गई थीं ये गाड़ियां गरीबों के लिए, दूर दराज के गांवों के लिए हैं. पर, ये कभी चली ही नहीं. इनमें से कोई जंग खा रहा है, कोई धंस गया है. हर वैन जैसे कह रही हो “मौत आ चुकी है, पर मुक्ति अभी बाकी है.”
नए-नवेले शव वाहन कुछ स्थिति में बेकार खड़े हैं. कई वाहन अब जंग खाने लगे हैं
अप्रैल का ऐलान, जुलाई की खामोशी
अप्रैल 2025 में मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने इन गाड़ियों की घोषणा की थी. वादा था अब कोई शव कंधे या ठेले पर नहीं जाएगा. कॉल सेंटर 1080 होगा, मेडिकल कॉलेजों में वैन तैनात होंगी, हर अंतिम यात्रा को गरिमा मिलेगी. लेकिन जुलाई बीत गया गाड़ियां वहीं की वहीं खड़ी है.
बजट की चादर बड़ी हुई, मगर आत्मा सिकुड़ गई
सरकार ने इस साल स्वास्थ्य बजट में 8.78% का इज़ाफा किया. गाड़ियां खरीदीं, ट्रेनिंग हुई, टेंडर हुए पर अब सिर्फ एक ‘राजनीतिक शुभमुहूर्त’ की प्रतीक्षा है.कुछ मृतकों के परिजनों ने हमसे कहा मौत शुभ-अशुभ नहीं देखती साहब, वो आती है चुपचाप. और आप उसे झंडा, भाषण और कैमरे का इंतज़ार करवा रहे हैं? इस मामले में कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने कहा , “ये सरकार सिर्फ इवेंट की है, इवेंट होगा तो शव वाहन मिलेंगे. शर्मनाक हालात हैं … ” उमंग सिंघार, नेता प्रतिपक्ष का कहना था “ये सरकार का कर्तव्य है कि जरूरतमंद को शव वाहन मिले. इसमें देरी नहीं होनी चाहिए.” हालांकि उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल कहते हैं “उद्घाटन नहीं होगा, कोशिश है जल्द सेवा शुरू करें.” पर सवाल ये है कि इन कोशिशों में कब तक लाशें गलती रहेंगी?