मंदिर कोई बनाए, पूजा सिर्फ हम करेंगे
छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने की घटना को कारसेवक अब तक नहीं भुला पाए हैं। उत्तराखंड से तकरीबन पांच हजार से ज्यादा कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे। इनमें उत्तराखंड भाजपा के सभी छोटे-बडे नेता शामिल थे। वहीं, बैरागी साधुओं ने दावा किया है कि अयोध्या में प्रस्तावित राम जन्म भूमि मंदिर में पूजा अर्चना करने का अधिकार केवल निर्मोही अणि अखाडे़ को ही है। बैरागी साधुओं का मानना है कि राम मंदिर का राजनीतिकरण भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने राजनीतिक फायदे के लिए किया है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट मंदिर के पक्ष में ही फैसला देगा क्योंकि सारे साक्ष्य मंदिर के पक्ष में ही है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि न्यायालय से फैसला आने में समय लगता है और फैसला आने से पहले कांगे्रस, भाजपा और अन्य हिन्दू संगठनों के नेता मंदिर निर्माण को लेकर जो बयानबाजी कर रहे हैं उससे अखाड़ा परिषद को कोई ऐतराज नहीं है। सबको अपनी-अपनी बात रखने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि आज मंगलवार है और हनुमानजी का दिन है। आज से ही सुप्रीम कोर्ट में राममंदिर को लेकर सुनवाई शुरू हुई है, इसलिए उन्हें पूरी उम्मीद है कि फैसला हक में आएगा। 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा विवादित ढांचा गिराने को सही ठहराते हुए महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि मुगल शासकों ने राम मंदिर तोडकर मस्जिद बनाई तो हमने विवादित ढांचा हटाकर रामलला की स्थापना कर दी।
अखिल भारतीय संत समिति के प्रवक्ता और दिगंबर अणि बैरागी अखाड़े के महंत बाबा हठयोगी ने कहा कि भाजपा ने हिंदू वोटों को साधकर अपना जनाधार बढ़ाने के लिए राम मंदिर निर्माण के आंदोलन को राजनीतिक रंग दिया। वहीं, कांग्रेस के नेताओं ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए मंदिर निर्माण के आंदोलन को अपने चश्मे से देखा। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही मंदिर मामले में दूध के धूले नहीं हैं। महंत बाबा हठयोगी ने कहा कि मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने की पूरी उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण कोई भी करे, परंतु राम मंदिर में पूजा का अधिकार केवल निर्मोही अणि बैरागी अखाड़े को ही है। और यह अधिकार अनादिकाल से बैरागी अखाड़े का है और रहेगा। किसी अन्य संस्था को राम मंदिर में पूजा का अधिकार बैरागी संप्रदाय किसी भी सूरत में लेने नहीं देगा। बैरागी साधुओं की इस चेतावनी से साफ है कि राम मंदिर के पूजा-पाठ को लेकर भाजपा-विहिप और बैरागी साधुओं में टकराव हो सकता है।
बड़ी संख्या में अयोध्या गए थे कारसेवक
1992 की 4 दिसंबर को कारसेवक उत्तराखंड के देहरादून, हरिद्वार, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी, चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल, चम्पावत जिलों से बड़ी संख्या में अयोध्या गए थे। उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कहना है कि 6 दिसंबर 1992 को कारसेवा के वक्त अयोध्या में बड़ी संख्या में कारसेवक जुटे थे। कारसेवकों के मन में पहले से विवादित ढांचा ढहाने की कोई योजना नहीं थी। लेकिन ढांचा ढहते देख वहां मौजूद अन्य कार सेवक हक्के-बक्के रह गए। अयोध्या की घटना को याद करते हुए अजय भट्ट कहते हैं कि कारसेवक जब ढांचे की र्इंटे और मिट्टी लेकर वापस लौट रहे थे, तब अयोध्या के आसपास के गांव वालों ने उनको अपने घरों से खाना बनाकर खिलाया और उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष और गंगासभा हरकी पैड़ी के पूर्व अध्यक्ष अशोक त्रिपाठी भी अयोध्या में कारसेवा करने वालों में शामिल थे। वे 3 दिसंबर 1992 को 400 कारसेवकों के जत्थे को हरिद्वार से लेकर अयोध्या रवाना हुए थे और 4 दिसंबर को वे अयोध्या पहुंचे थे। त्रिपाठी का कहना है कि अयोध्या में देश के कई हिस्सों से आए कारसेवक जमा थे।1992 की 6 दिसंबर को अयोध्या में हुई घटना के चश्मदीद गवाह अशोक त्रिपाठी बताते हैं कि विवादास्पद ढांचे से काफी दूरी पर बने मंच पर विहिप और भाजपा के दिग्गज नेता अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी, राज माता सिंधिया, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, प्रमोद महाजन समेत कई नेता मौजूद थे। सुबह तकरीबन 11 बजे भाषण चल रहा था, कार सेवकों का एक जत्था विवादास्पद ढांचे के ऊपर भगवा झंडा फहराने के लिए चढ़ गया। तब नेताओं ने कारसेवकों से कहा हमें केवल केवल सांकेतिक कारसेवा करनी है। त्रिपाठी के मुताबिक विवादास्पद ढांचे से नीचे उतरने की अपील को कारसेवकों ने अनसुना कर दिया। बाद में रामलला की मूर्ति के ऊपर तिरपाल बिछाने का काम कारसेवकों ने किया।
उत्तराखंड के रहने वाले कारसेवक संजय आर्य का कहना है कि उन्होंने 23 अक्तूबर 1989 और 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में हुई कारसेवा में भाग लिया था। ढहे ढांचे की मिट्टी वे और उनके कई कारसेवक साथी अपने घरों में लेकर आए। संजय के मुताबिक पहले तो अयोध्या में तैनात पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों और पुलिस वालों ने कारसेवकों को रोकने के लिए कोई सख्त कार्रवाई नहीं की, परंतु ढांचा ढहने और कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त होने के बाद पुलिस ने कारसेवकों की धुनाई की।
उत्तराखंड बजरंग दल के प्रमुख नेता राकेश बजरंगी का कहना है कि अयोध्या में उस घटना के 25 साल बाद भी श्रीरामलला का मंदिर का निर्माण न होने की कसक उनके मन में बनी हुई है।
उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहा मुकदमे का फैसला कोई दिशा दिखाएगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा।