मंदिर, मस्जिद व सार्वजनिक स्थानों पर लगे अवैध लाउडस्पीकरों पर कार्रवाई के आदेश

उत्तर प्रदेश सरकार ने मंगलवार को प्रदेश के सभी जिलों के अधिकारियों को निर्देश दिए कि मंदिरों, मस्जिदों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगे अवैध लाउडस्पीकरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाए, क्योंकि अवैध लाउडस्पीकर हटाने की आखिरी तारीख 15 जनवरी तक थी। प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार ने बताया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद सात जनवरी को प्रदेश सरकार ने 10 पन्नों का लाउडस्पीकर के सर्वेक्षण का प्रोफार्मा जारी किया था। इसमें स्थायी रूप से लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत लेने का फार्म और जिन लोगों ने लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत नहीं ली है उनके खिलाफ की गई कार्रवाई की विस्तृत जानकारी देने को कहा गया था। सरकार ने इस बारे में प्रशासन से इजाजत लेने के लिए 15 जनवरी आखिरी तिथि निर्धारित की थी और 20 जनवरी से लाउडस्पीकर हटवाने का काम शुरू करने के निर्देश दिए थे। कुमार ने कहा- सभी जिलों के अधिकारियों से पूछा गया है कि जिन संस्थाओं या लोगों ने लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत के लिए फार्म नहीं भरा है और इस बारे में दिए दिशानिर्देशों को नहीं माना है, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है?

हाई कोर्ट ने केंद्र के 2000 में ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए बनाए गए नियमों का कड़ाई से पालन न होने पर राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। उसने राज्य सरकार से पूछा था कि क्या प्रदेश के सभी धार्मिक स्थलों- मस्जिदों, मंदिरों, गुरुद्वारों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगे लाउडस्पीकर संबंधित अधिकारियों से इजाजत लेने के बाद ही लगाए गए हैं। इसके बाद सात जनवरी को सरकार ने 10 पन्नों का लाउडस्पीकर सर्वेक्षण का प्रोफार्मा जारी किया। इसमें स्थायी रूप से लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत लेने का फार्म, जिन लोगों ने लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत नहीं ली है उनके खिलाफ की गई कार्रवाई की विस्तृत जानकारी देने को कहा गया।

अदालत के लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश के धार्मिक स्थलों व अन्य सरकारी स्थानों पर बिना सरकारी अनुमति के लाउडस्पीकर बजाने पर सख्त एतराज जताया था। अदालत ने सरकार से पूछा था कि क्या इन सभी स्थानों पर लगे लाउडस्पीकरों को लगाने के लिए लिखित में संबंधित अधिकारी की अनुमति हासिल की गई है। यदि अनुमति नहीं ली गई है तो ऐसे लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। अदालत ने यह भी पूछा था कि जिन जगहों पर बिना अनुमति के लाउडस्पीकर बज रहे हैं उनके खिलाफ संबंधित अधिकारियों ने क्या कार्रवाई की है? अदालत ने प्रमुख सचिव (गृह) व उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को यह सारी सूचना अपने व्यक्तिगत हलफनामों के जरिए एक फरवरी तक पेश करने का आदेश दिया था। अदालत ने दोनों अफसरों को चेताया भी कि उक्त सूचना नहीं दी गई तो दोनों अफसर अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से हाजिर रहेंगे।

20 दिसंबर को यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रमनाथ व न्यायमूर्ति अब्दुल मुईन के पीठ ने एक स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की दायर जनहित याचिका पर पारित किया था। अदालत ने कहा था कि बार-बार इस बारे पर याचिकाएं दाखिल होने से एक बात तय है कि या तो संबंधित अफसरों के पास 2000 के नियम के प्रावधानों को लागू करने की इच्छाशक्ति नहीं है या उनका उत्तरदायित्व तय नहीं है। अदालत ने प्रमुख सचिव गृह और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन से अलग-अलग हलफनामे पर यह भी जानकारी मांगी थी कि दिन या रात में लाउडस्पीकर बजाते निकलने वाले जुलूसों पर क्या कार्रवाई की गई है। इनमें शादी जैसे मौकों पर गाजे-बाजे के साथ निकलने वाले जुलूस भी शामिल हैं। अदालत ने यह भी पूछा था कि क्या सूबे में ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए कोई मशीनरी बनाई गई है जैसा कि उसने पहले आदेश दिया था।

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