महागठबंधन में अलग-अलग बैठक कर रहे नेता: मायावती से मिले पवार, ममता से अब्दुल्ला!

अगले साल होने वाले आम चुनावों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दल महागठबंधन की रूपरेखा पर विचार कर रहे हैं। इस बीच महागठबंधन मे पीएम पद के दो बड़े दावेदारों के बीच अलग-अलग धड़ा बनता दिख रहा है। एक धड़ा पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी का दिख रहा है तो दूसरा धड़ा यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती का बनता दिख रहा है। इन धड़ों की आशंका को तब बल मिला, जब गुरुवार (26 जुलाई) को एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने नई दिल्ली में मायावती से मुलाकात और उसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की। दोनों नेताओं के बीच महागठबंधन की संभावनाओं और रणनीति पर विचार-विमर्श हुआ। उनके साथ बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा भी थे।

इस मुलाकात के अगले ही दिन यानी शुक्रवार (27 जुलाई) को कोलकाता में ममता बनर्जी से जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मुलाकात की है। दोनों नेताओं की मुलाकात राज्य सचिवालय नबन्ना में हुई है। माना जा रहा है कि इस दौरान दोनों नेताओं ने आगामी लोक सभा चुनाव में गठबंधन और रणनीति पर चर्चा की है। अब 30 जुलाई को ममता बनर्जी दिल्ली जाएंगी, जहां वो तीन दिन रहकर महागठबंधन की संभावनाओं और रणनीति पर अन्य सहयोगी दलों के नेताओं से संपर्क करेंगी। बता दें कि अभी संसद का मानसून सत्र चल रहा है। इसलिए, अधिकांश क्षेत्रीय क्षत्रप भी नई दिल्ली में हैं। सूत्र बताते हैं कि इस दौरान ममता बनर्जी महागठबंधन के अन्य सहयोगियों को कोलकाता में अगले साल 19 जनवरी को आयोजित होने वाली रैली में शामिल होने का न्योता भी देंगी।

इस बीच, विपक्षी दलों के नेता 31 जुलाई को ईसाई संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्याप्त डर का वातावरण और असहिष्णुता’ में शामिल हो सकते हैं। ममता बनर्जी भी वहां मौजूद रहेंगी। माना जा रहा है कि आम चुनावों से पहले धार्मिक अल्पसंख्यकों के जुटान का यह एक बड़ा इवेंट हो सकता है। हालांकि, महागठबंधन के दो धड़ों में कौन सा दल किस ओर रहेगा, यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में अगर महागठबंधन की एकजुटता बनी रही तो बीजेपी की राह मुश्किल हो सकती है। अन्यथा इनके बीच मतभेद होने का फायदा बीजेपी उठा सकती है। ऐसे में नरेंद्र मोदी को फिर केंद्र की सत्ता से बेदखल करना मुश्किल हो सकता है।

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