महाराष्ट्र में किसान आंदोलन देखकर इन मुख्यमंत्रियों के उड़े होश, जानिए क्यों?

महाराष्ट्र सरकार ने भले ही आंदोलनरत किसानों की मांगें मान ली हो और करीब 40,000 किसानों ने आंदोलन वापस ले लिया हो मगर पड़ोसी राज्यों और बीजेपी शासित उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए खतरे की घंटी बज उठी है, जहां इस साल के आखिर तक विधान सभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सबसे आगे है। वैसे तो किसानों का मुद्दा देशव्यापी है मगर चुनाव होने की वजह से इन राज्यों में बीजेपी को किसानों द्वारा सियासी खेल बिगाड़ने का भय सता रहा है। शायद यही वजह है कि संघ की तरफ से भी बयान दिया गया कि किसानों की समस्याओं की अनदेखी नहीं की जा सकती है।

बीजेपी खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 के चुनावों में कहते नजर आए थे कि उनकी सरकार बनने पर किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी। चार साल बीत गए मगर किसान अभी तक उपज का उचित मूल्य के लिए ही जूझ रहे हैं। गुजरात चुनावों में भी ग्रामीण इलाकों में किसानों ने बीजेपी के खिलाफ वोट किया था। नतीजतन पार्टी को दर्जनभर से ज्यादा ग्रामीण सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। मध्य प्रदेश में पिछले साल भी किसान आंदोलन कर चुके हैं। जून 2017 में प्याज और दूध का उचित दाम नहीं मिलने पर विरोधस्वरूप किसानों ने सैकड़ों लीटर दूध सड़कों पर बहाया था। मंदसौर में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। 70 फीसदी किसान आबादी वाले मध्य प्रदेश में मंदसौर आंदोलन में पांच किसान समेत 6 लोग मारे गए थे। चुनावी साल होने की वजह से सीएम शिवराज सिंह चौहान की चिंताएं बढ़ गई हैं।

धान का कटोरा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ में भी किसान पिछले दिनों रायपुर कूच कर चुके हैं। किसानों ने 22 जिलों में 30 से ज्यादा जगहों पर चक्का जाम किया था। कीमतों में गिरावट की वजह से यहां भी किसान टमाटर और आलू सड़कों पर फेंकने को मजबूर हुए थे। वहीं राजस्थान में भी किसानों में वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश है। पिछले साल किसानों ने जयपुर के पास भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जमीन समाधि सत्याग्रह किया था। किसानों ने सीकर में भी राजे सरकार के खिलाफ 13 दिन तक महापड़ाव डाला था और चक्का जाम कर दिया था।

बता दें कि अपनी कई मांगों को लेकर महाराष्ट्र की देवेन्द्र फड़णवीस सरकार पर दबाव बनाने के लिए करीब 40,000 किसानों ने नासिक से छह मार्च को ‘लॉन्ग मार्च’ शुरू किया था और 12 मार्च को मुंबई में प्रवेश किया था। किसानों की मांग पूर्ण कर्जमाफी, उपज के उचित दाम, फसल बीमा योजना में उचित मुआवजे की मांग, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना, मंडी भाव निर्धारित करना, न्यूनतम समर्थन मूल्य भी शामिल है। इस आंदोलन को कांग्रेस, आप, शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी अपना समर्थन दिया था।

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