माजिद मजीदी : गरीबी का सौंदर्यशास्त्र

अजीत राय

भारत के 48वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की शुरुआत विश्व प्रसिद्ध ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी की हिंदी फिल्म ‘बियोंड द क्लाउड्स’ से होना एक अभूतपूर्व घटना है। विशाल भारद्वाज, गौतम घोष और एआर रहमान के सहयोग से उन्होने गरीबी का एक ऐसा सौंदयर्शास्त्र रचा है जो वैश्विक है। आमिर खान की ‘लगान’ से चर्चित छायाकार अनिल मेहता का कैमरा मुंबई की झोपड़पट्टियों, धोबीघाटों और अंधेरी गलियों में तलछट की जिंदगी जी रहे लोगों की असाधारण छवियां सामने लाता है। एआर रहमान का संगीत दृश्यों को कई बार बकौल मजीदी ‘आध्यात्मिक भावबोध’ में बदल देता है । मुंबई की झोपड़पट्टियों में नशीली दवाओं के कारोबार में फंसा आमिर ( ईशान खट्टर) एक दिन पुलिस की छापेमारी से बचता हुआ अपनी बहन तारा (मालविका मोहानन) से टकरा जाता है जिसे उसने वर्षों से नहीं देखा। तारा एक लौंड्री में काम करती है। तारा अकेली रहती पर उसे मर्दों की कामुक कुंठाओं से रोज लड़ना है। लौंड्री का बूढ़ा मालिक अक्ष ( गौतम घोष) आमिर को पुलिस से बचाता है। दोनों भाई-बहन साथ रहने की कोशिश करते है। अक्ष आमिर को बचाने के बदले तारा के साथ सोना चाहता है। तारा के इनकार करने पर वह जबरदस्ती करता है। बलात्कार से बचने की कोशिश में तारा लगभग उसे मार देती है और जेल चली जाती है ।

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