मुकेश-अनिल अंबानी का झगड़ा सुलझाने उतरे थे प्रणब मुखर्जी! इन कारोबारी घरानों की लड़ाई भी हुईं मशहूर
रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटर और फोर्टिस हेल्थकेयर के संस्थापक शिविंदर मोहन सिंह ने मंगलवार (चार सितंबर) को बड़े भाई मलविंदर सिंह के खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में याचिका दायर की। शिविंदर ने इसमें बड़े भाई मलविंदर पर फोर्टिस को डुबोने का आरोप लगाया। वह इसके साथ ही मलविंदर के साथ की गई हर साझेदारी से अलग हो गए। पर यह पहला मामला नहीं है, जिसमें कारोबारी घराने के लोग आमने-सामने आए हों। मौजूदा समय में देश के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी और उनके भाई अनिल अंबानी का झगड़ा भी इससे पहले राष्ट्रीय सुर्खियों में छाया था। दोनों भाइयों के बीच मानहानि के मामले दर्ज हुए, प्रधानमंत्री को चिट्ठियां लिखी गईं और एक-दूजे को कोर्ट तक घसीटा गया। मगर संबंध पटरी पर नहीं लौट पा रहे थे। आलम यह था कि तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी दोनों की सुलह कराने आगे आए थे।
अंबानी बनाम अंबानी की लड़ाई पिता धीरूभाई के गुजरने (2002 में) के बाद शुरू हुई। चूंकि उन्होंने कोई वसीयत नहीं छोड़ी थी, लिहाजा बड़े बेटे मुकेश रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन और एमडी बने, जबकि अनिल को वाइस-चेयरमैन का पद मिला। कंपनी पर नियंत्रण को लेकर दोनों में विवाद हुआ। 2005 में मां कोकिलाबेन ने मध्यस्थता करते हुए दोनों भाइयों के बीच रिलायंस की अलग-अलग कंपनियों का बंटवारा किया। ऑइल-गैस, पेट्रोकेमिकल, रिफाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों का जिम्मा मुकेश को मिला था, जबकि अनिल को बिजली, टेलीकॉम और वित्तीय सेवाओं से जुड़ी कंपनियों की कमान सौंपी गई। पर इसके बाद भी दोनों भाइयों के बीच विवाद जारी रहा। अनिल आरोप लगाते थे कि मुकेश को सरकार का समर्थन मिल रहा है।
फिर 2008 में अनिल ने मुकेश पर 10 हजार करोड़ रुपए की मानहानि का मुकदमा दायर किया। कारण- मुकेश ने न्यूयॉर्क टाइम्स को इंटरव्यू में अनिल पर बड़ा आरोप लगाया था। दावा किया था कि अनिल ने जासूसों की सहायता से आरआईएल की मुखबिरी कराई थी। दोनों भाइयों के बीच का मसला राष्ट्रीय सुर्खियां में था। तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने तब कहा था, “भारतीय कारपोरेट जगत में वे (मुकेश-अनिल) इतने बड़े नाम है कि उनके बीच का विवाद कैपिटल मार्केट्स पर प्रभाव डाल सकता है। मैंने उन्हें बड़े होते देखा है। वे धीरूभाई की संतानें हैं, लिहाजा मेरे लिए उनके बीच में फर्क करना कठिन है। उन्हें अपने मसले खुद हल करने की कोशिश करनी चाहिए।”
इन कारोबारी घरानों की लड़ाई भी हुई थी मशहूरः 2004 में दिवंगत माधव प्रसाद बिरला की पत्नी प्रियमवदा नहीं रहीं। वह वसीयत में सारी जायदाद और शेयर सीए राजेंद्र सिंह लोढ़ा के नाम कर गईं। परिजन ने आपत्ति जताते हुए मामला कोर्ट में खींचा। इस लड़ाई में बिरला परिवार ने अरुण जेटली-राम जेठमलानी की मदद भी ली थी। वहीं, 2012 में शराब कारोबारी पॉन्टी चड्ढा और भाई हरदीप के बीच संपत्ति विवाद को लेकर शूटआउट हुआ, जिसमें दोनों मारे गए थे। हरदीप 2010 से बीमार पिता पर पारिवारिक कारोबार को तीनों भाइयों के बीच बांटने को लेकर दबाव बना रहा था। सिंघानिया परिवार में भी पनपा संपत्ति विवाद राष्ट्रीय सुर्खियों में खूब छाया था।