मुस्लिम महिलाओं के खतने पर बैन? सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने बताया असुरक्षित तो धर्मगुरु बोले- इस्‍लाम की जरूरी प्रथा

देश में तीन तलाक पर रोक की बहस और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बीच अब मुस्लिम महिलाओं के खतने पर रोक लगाने को लेकर भी अावाज उठने लगी है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि शरीर के साथ हिंसक छेड़छाड़ क्यों होना चाहिए? किसी प्रथा के तहत जनानंग को छूने की इजाजत कैसे दी जा सकती है? केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कई देशों मेें इस प्रथा को बंद किया जा चुका है। भारत में भी बंद होना चाहिए। यह पूरी तरह असुरक्षित है। वहीं, इस बाबत दाउदी बोहरा केे धर्मगुरू ने वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी के माध्यम से कहा कि खतना हमारे इस्लाम की जरूरी प्रथा है। इस्लामिक दुनिया के सभी पुरूष खतना करवाते हैं। फिर महिलाओं पर बैन क्यों?

दरअसल, महिलाओं के जननांगों को विकृत करने की इस परंपरा को फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) कहा जाता है। बोलचाल की भाषा में इसे महिला खतना कहा जाता है। बोहरा समुदाय में लड़कियों की कम उम्र (6 से 8 साल) में ही खतना करा दिया जाता है। इस दौरान योनी के बाहरी हिस्से की त्वचा को निकाल दिया जाता है। खतना के बाद हल्दी, गर्म पानी और मरहम लगाकर लड़कियों के दर्द को कम करने की कोशिश की जाती है। भारत में ये दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय के लोग गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में रहते हैं। इस समुदाय के लोग भारत में सबसे अधिक शिक्षित समुदायों में से माने जाते हैं। इसके पीछे इनका मानना है कि खतना करवाने के बाद से महिलाओ की यौन इच्छाओं पर काबू पाया जा सकता है। ये शादी से पहले किसी दूसरे के साथ संबंध नहीं बनाएंगी। लेकिन खतना के दौरान जो दर्दनाक पीड़ा होती है, महिलायें उसे जिंदगी भर नहीं भूल पाती।

वहीं, संयुक्त राष्ट्र भी एफजीएम की प्रक्रिया को मानवाधिकारों का उल्लंघन मानता है। दिसंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर एफजीएम को दुनिया भर से खत्म करने का संकल्प लिया। महिला खतना के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसे रोकने के मकसद से यूएन ने साल की 6 फरवरी तारीख को ‘इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस फॉर एफजीएम’ घोषित किया है। बता दें कि दाउदी बोहरा समुदाय से आने वाली कई महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेेंद्र मोदी से लड़कियों के खतना पर रोक लगाने की मांग की थी। कहा कि एक एडवाइजरी जारी कर खतना को आईपीसी और पोस्को एक्ट के तहत अपराध घोषित करना चाहिए। इन महिलाअों ने खतना के खिलाफ एक कैंपेन भी चलाया है।

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