मेट्रो के प्रबंधन में दिल्ली सरकार की कोई रुचि नहीं: स्वराज इंडिया

दिल्ली मेट्रो की अहम कमेटियों में दिल्ली सरकार की भागीदारी नगण्य रही है। मेट्रो के प्रबंधन के लिए पिछले दो साल में हुई 15 बैठकों में से 14 में दिल्ली सरकार गैरहाजिर रही है। ये आरोप स्वराज इंडिया ने लगाए हैं। मेट्रो रेल में केंद्र और दिल्ली सरकार की 50-50 भागीदारी है। दिल्ली मेट्रो के प्रबंधन में दिल्ली सरकार की अहम भूमिका होती है।  16 सदस्यीय मेट्रो बोर्ड में भी मेट्रो के 6 पूणर्कालिक निदेशकों के अलावा केंद्र और दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर पांच-पांच निदेशक हैं। लेकिन दिल्ली मेट्रो की सालाना रिपोर्ट से मिली हैरान करने वाली एक जानकारी अत्यंत ही चिंताजनक है। इन तथ्यों से मेट्रो रेल के प्रति दिल्ली सरकार की गंभीरता उजागर होती है। स्वराज इंडिया के मुताबिक पिछले दो वित्त साल में दिल्ली मेट्रो के प्रबंधन के लिए बनी अहम कमेटियों की 15 बैठकें हुई हैं। इनमें से 14 बैठकों में दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि उपस्थित भी नहीं रहे हैं।

वित्त वर्ष 2015-16 में आॅडिट कमिटी, प्रॉपर्टी डेवलपमेंट कमिटी, रेमयुनेरेशन कमिटी और आॅपरेशन एवं मेंटेनेंस की कुल 8 बैठक हुई। इन महत्त्वपूर्ण बैठकों में से सिर्फ एक बैठक में दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि अपनी हाजरी लगा पाए। इसी तरह वर्ष 2016-17 में आॅडिट कमिटी, प्रोपर्टी डेवेलपमेंट और आॅपरेशन एवं मेंटेनेंस कमिटी की कुल 7 बैठक हुई हैं। दुर्भाग्य की बात है कि इनमें से एक भी बैठक में दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकारी उपस्थित नहीं थे। स्वराज इंडिया का आरोप है कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने की चिंता तो दूर, अपने बेहतरीन कार्य प्रणाली के लिए मशहूर दिल्ली मेट्रो जैसे संस्थान को भी बर्बाद करने की योजना चल रही है। आम जनता को गुमराह करने के लिए मेट्रो हमें दे दो का नारा लगा रही है। हम चलाकर दिखाएंगे,जैसे फिल्मी डायलॉग मारने वाले मुख्यमंत्री का दिल्ली मेट्रो के प्रति रवैय्या अब उजागर हो गया है। अपने हिस्से का काम करने में अगर दिल्ली सरकार की इतनी खराब स्थिति और परिणाम है तो किस मुंह से मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली मेट्रो के बारे में आज बड़ी-बड़ी बातें करते हैं? स्वराज इंडिया का सवाल है कि क्या मेट्रो रेल पर ध्यान न देने का एक कारण राजधानी दिल्ली में ओला उबर को बढ़ावा देना है? आॅटो परमिट के मामले में भी यह दिखा कि दिल्ली सरकार 10 हजार आॅटो परमिट को किसी न किसी बहाने से लगातार रोकते रही। जब तक कि दिल्ली हाई कोर्ट सख्त नही हुई। क्या मेट्रो के प्रति ऐसा रवैया इसलिए है ताकि निजी परिवहन, फाइनेंसर्स और ओला उबर को फायदा हो?

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *