मौत के जिम्मेदार डॉक्टरों को मामूली सजा, डीएमसी के इस न्याय से मरीज के परिजन हैरान, एमसीआइ जाने पर कर रहे विचार
डॉक्टरों की लापरवाही से कुल्हा लगवाने आई एक मरीज प्रभा देवी की मौत हो गई। जांच में यह आरोप सही पाए गए लेकिन इसके लिए जिम्मेदार डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर एक को नोटिस देकर छोड़ दिया गया जबकि दूसरे का सिर्फ एक महीने के लिए ही पंजीकरण रद्द किया गया। दिल्ली मेडिकल कांउसिल (डीएमसी) के इस न्याय से मरीज के परिजन हैरान हैं। मरीज के पति (शिकायतकर्ता) बसल वर्मा ने बताया कि बिना समुचित डिग्री और बिना जरूरी मशीन के ही डॉक्टरों उनकी पत्नी के कूल्हा बदलने का जोखिमपूर्ण ऑपरेशन किया और हालत बिगड़ने पर बार-बार आग्रह के बावजूद ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि मेरी पत्नी को बचाने की कोशिश भी नहीं की गई। करीब दस लाख रुपए खर्च हुए सो अलग।
बसल ने आरोप लगाया कि डॉक्टरों ने उनकी पत्नी का कूल्हा बदलने के एवज में उनसे मोटी रकम वसूली। इलाज के दौरान बिगड़ती स्थिति को लेकर भी उन्हें अंधेरे में रखा। बसल ने पत्नी की मौत के लिए डॉक्टर संजीव त्रिपाठी और डॉक्टर एमके सक्सेना सहित कई अन्य डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके खिलाफ इंडियन मेडिकल काउंसिल (एमसीआइ), डीएमसी, उपभोक्ता फोरम और अदालत सहित संबंधित निकायों से शिकायत की है। गाजीपुर गांव में रहने वाले बसल वर्मा की डीएमसी में शिकायत और ‘जनसत्ता’ में खबर छपने के बाद डीएमसी ने एक चार सदस्यीय जांच समिति गठित कर मामले की जांच क ी। डॉक्टर सुबोध कुमार की अगुआई में बनी समिति में डॉक्टर अश्विनी गोयल, डॉक्टर अतुल गोयल और डॉक्टर सुमित सुराल शामिल थे। समिति ने जांच में कई स्तर पर गड़बड़ी पाई जिसे अपनी रिपोर्ट में लिखा भी है।.
समिति ने पाया कि बसल की पत्नी प्रभा देवी को तीन साल से कुल्हे में दर्द की शिकायत थी। अपेक्स अस्पताल के हड्डी के डॉक्टर संजीव त्रिपाठी ने इलाज के लिए कूल्हा बदलवाने का सुझाव दिया। डॉक्टर त्रिपाठी और डॉक्टर एनके सक्सेना की राय और निगरानी में विमला देवी अस्पताल में उनका अप्रैल 2014 में ऑपरेशन कर कूल्हा लगा दिया। बसल ने बताया कि अप्रैल 2014 से दो महीने पहले भी कूल्हा लगाया था। ऑपरेशन के दो महीने के बाद ही कृत्रिम कूल्हे में भी फ्रैक्चर हो गया। जब मरीज चलने फिरने में पूरी तरह असमर्थ हो गई तो वे फि रउन्हें लेकर 9 मार्च 2017 को डॉक्टर त्रिपाठी के पास गए। इसके बाद उन्होंने एपेक्स अस्पताल में उनको 10 अप्रैल को फि र से भर्ती कर लिया।
जांच में पता लगा कि कृत्रिम कूल्हा लागाना फेल हो गया है, इसलिए फिर से ऑपरेशन होगा। बसल का आरोप है कि पिछला घाव और सूजन ठीक हुए बिना ही बड़ा और मोटा कूल्हा लगाया गया। इन सबके चलते उनकी पत्नी की हालत फिर गंभीर हो गई। लेकिन बिना उनकी स्थिति में सुधार के ही उनको 16 अप्रैल क ो अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इस दौरान उनको संक्रमण (सेप्टीसीमिया) हो गया। दोपहर तक स्थिति यह हो गई कि फिर से उसी दिन भर्ती करना पड़ा। यह समिति ने भी जांच में पाया। डीएमसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि गंभीर हालत के बावजूद उचित ध्यान नहीं दिया गया। तब इनके शरीर में टीलएसी 22900 था। हालत बिगड़ती गई। वह 27 अप्रैल तक अस्पताल में भर्ती रहीं और आराम नहीं हुआ।
बसल के मुताबिक उनको जबरन 27 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अगले दिन हालत इतनी खराब हो गई कि फिर से भर्ती करना पड़ा। समिति ने पाया कि उनके पास इस स्तर की सर्जरी करने की योग्यता ही नहीं थी। इस मामले में किए गए इलाज को वैज्ञानिक तौर पर बेहद असंतोषजनक बताया। जबकि मरीज को कई साल पहले टीबी हुआ था, उसके बावजूद डॉक्टर एमके सक्सेना ने इस बारे में विशेषज्ञ राय क्यों नहीं ली यह समझ से परे है। जबकि वह फिजीशियन के तौर पर इसे देख रहे थे। इतना ही नहीं छाती में थक्के बनने की (पल्मोनरी थ्रोम्बोएम्बोलिक डिजीज) दिक्कत भी हो गई इसके बावजूद भी जरूरी कदम नहीं उठाया।
बसल के मुताबिक बाद में जबरन उनको छुट्टी दे दी गई। तब वे पत्नी को लेकर एक अन्य अस्पताल में ले गए। 9 मई को वहां भी उनकी पत्नी की तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था तो उन्हें इस अस्पताल ने भी छुट्टी दे दी। 10 मई को एक और अस्पताल जाने के रास्ते में मरीज ने दम तोड़ दिया। जांच समिति ने पाया कि डॉक्टर त्रिपाठी डीएमसी में महज फिजीशियन के तौर पर पंजीकृत हैं। यह ही नहीं उनकी आर्थो की डिग्री जो कि सीपीएस मुंबई से ली गई है, वह एमसीआइ से मान्यता प्राप्त नहीं है। इसलिए उनको कूल्हा लगाने का विशेषज्ञ नहीं माना जा सकता। डीएमसी ने उनका पंजीकरण एक महीने के लिए रद्द कर दिया गया जबकि डॉक्टर सक्सेना को केवल चेतावनी जारी की गई।
इस सजा के नाकफी बताते हुए बसल वर्मा ने कहा कि उनके खिलाफ महज इतनी कार्रवाई समझ से परे है। उनका सवाल है कि क्या उनकी पत्नी की मौत के मुकाबले में यह सजा वाजिब है। डीएमसी के सचिव डॉक्टर गिरीश त्यागी ने कहा है कि समिति ने विस्तृत जांच के आधार पर समुचित कार्रवाई की है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर त्रिपाठी की अर्थो वाली डिग्री को महाराष्ट्र में मान्यता है। इसके बावजूद पीड़ित परिवार को संतोष नहीं है तो वे एमसीआइ में इस मामले के लिए अपील में जा सकते हैं।