मौलाना ने दी दलील- काफिर बनने से अच्छा है गुलाम बन जाएं महिलाएं

सोशल मीडिया पर इस वक्त अमेरिका में रहने वाले इस्लामिक स्कॉलर का वीडिया काफी वायरल हो रहा है। इस वीडियो में इस्लामिक स्कॉलर सईद मोहम्मद बाकर अल-काज़विनी यह दलील देते दिख रहे हैं कि महिलाओं के लिए काफिर बनने से अच्छा है कि वे गुलाम बन जाएं। पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारिक फतेह ने भी अपने ट्विटर पर इस वीडियो को शेयर किया है। वीडियो शेयर करते हुए फतेह ने लिखा, ‘यूएसए और कनाडा में किसी जगह पर एक इस्लामिक मौलाना ने ईसाई और गैर-मुस्लिमों पर निशाना साधा। मौलाना ने युद्ध की कैदी गैर-मुस्लिम महिलाओं को सेक्स गुलाम बनाने का पक्ष लेते हुए कहा कि इससे उन्हें इस्लाम में परिवर्तित किया जा सकता है।’

इस वीडियो को पहले आयशा मुर्ताद नाम के यूजर ने शेयर किया था। वीडियो में इस्लामिक स्कॉलर सईद मोहम्मद कहते हैं, ‘इस्लाम काफिर होना सबसे बड़ी बीमारी मानता है। बस अल्लाह पर विश्वास करो। अल्लाह पर विश्वास न करने वाली सोसायटी में रहने वाली महिलाओं को इससे सुरक्षित रखने की जरूरत है। इस्लाम इन महिलाओं को काफिरों से सुरक्षित करता है। इस्लाम उन्हें पकड़कर मुस्लिम समुदाय में लेकर जाता है, यह समुदाय एक अच्छा समुदाय है। इस समुदाय में लोगों को अल्लाह का डर है, लोग यहां अपने गुलामों के साथ अन्याय नहीं कर सकते। इसलिए इस्लाम इन महिलाओं और बच्चों को हेल्दी मुस्लिम सोसायटी में ले जाता है, वहां रखता है और आखिर में उन्हें छोड़ दिया जाता है। इसलिए पहले उन्हें अपनी सोसायटी में लाते हैं, उन्हें रखते हैं, बच्चों को बड़ा करते हैं, महिलाओं को शिक्षित करते हैं, युद्ध में कैद हुई महिलाओं में से भी कुछ के साथ ऐसा करते हैं और आखिरी में उन्हें छोड़ दिया जाता है। ऐसा करके आप उनके साथ अच्छा ही करेंगे, क्योंकि आप उन्हें काफिर सोसायटी से बचाते हैं।’

इसके अलावा इस्लामिक स्कॉलर ने अपने एक अन्य संबोधन में यह भी कहा है कि ऑफिस में पुरुषों द्वारा महिलाओं का उत्पीड़न होने जैसी घटनाएं होती हैं, क्योंकि ये पुरुषों के बायोलॉजिकल सिस्टम में है। मौलाना ने कहा था कि ऑफिस में जब महिला कर्मचारी और पुरुष कर्मचारी एक-दूसरे का साथ कंफर्टेबल हो जाते हैं तो उत्पीड़न जैसी घटनाएं होती हैं। इसका एक ही हल है कि महिला और पुरुषों को एक साथ काम नहीं करना चाहिए। दोनों के लिए अलग-अलग ऑफिस होना चाहिए।

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