यूपी: गांव को जिंदगी देने के लिए सूखे तालाब को लोगों ने किया जिंदा
गजेंद्र सिंह
पानी की जरूरत ने बरेली के सहसिया हुसैनपुर के लोगों को इतना जिम्मेदार बना दिया कि उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के एक सूख चुके तालाब को जिंदा कर दिया। करीब 500 मीटर के इस सूखे गड्ढे में तब्दील तालाब को ग्रामीणों ने दस मीटर लंबे और दस मीटर गहराई तक खोद कर लबालब कर दिया है। सरकारी विभाग के मुताबिक 6000 से अधिक तालाब वाले बरेली जिले का यह तालाब स्थानीय जिला प्रशासन की सूची में नहीं है। इसलिए यहां प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं की गई। गांववालों के श्रमदान से अब इस तालाब में आसपास के खेतों का पानी जाता है और बारिश का भी पानी इकट्ठा होता है। जब बारिश से अच्छी मात्रा में पानी भर जाता है तो इसका उपयोग ग्रामीण सिंचाई के लिए भी करते हैं। बरेली जिले में यही एक तालाब है जो लोगों के श्रमदान से लबालब है।
बरेली शहर से आठ किलोमीटर दूर इस गांव के लोगों को एकजुट कर रहे हैं राजनारायण गुप्ता। दो हजार की आबादी और करीब 1200 मतदाताओं वाले इस गांव के बारे में अण्णा आंदोलन से जुड़े और विकल्प संस्था चलाने वाले राजनारायण बताते हैं कि 2011 में इस गांव को गोद लेकर इसे अण्णा के रालेगण सिद्धि की तरह बनाने का विचार किया था। इसके बाद लोग मिलते गए और कारवां बनता गया। वे बताते हैं कि तालाब का काम 2016 में शुरू किया था, इसके बाद से यहां पानी भरा ही रहता है जबकि आसपास के तालाबों में इस तालाब जितना पानी भी नहीं है।
उनके साथ संस्था के लोग तो जुटे ही, साथ में गांव के रूप लाल गंगवार, प्रदीप गंगवार, सुरेश कुमार, बिंदु शर्मा और पूनम शर्मा जैसे लोगों ने बढ़-चढ़कर साथ दिया। गांव के सुरेंद्र कुमार हिंदी से परास्नातक हैं और बिंदु शर्मा बरेली कॉलेज में अंग्रेजी से परास्नातक कर रहे हैं। इनके अलावा पूनम शर्मा तालाब के साथ गांव में बच्चों को पढ़ाने का काम भी करती हैं। उत्तर प्रदेश की पूर्व समाजवादी सरकार ने पूनम शर्मा को मलाला सम्मान भी दिया था। गांव के रूपलाल गंगवार बताते हैं कि तीन साल से इस तालाब में पानी भरा हुआ है जो पिछले 20 साल से सूखा पड़ा था। दरअसल, तालाब बनाने की तकनीक अच्छे से पता न होने के कारण उसमें जलभराव नहीं हो पाता है। गंगवार बताते हैं कि प्रशासन की ओर से जो दो तालाब गांव में खोदे गए थे उनकी चारदीवारी उसी खोदी गई मिट्टी से ही बना दी गई जिससे गांव और खेतों का पानी तालाब तक पहुंच ही नहीं पाया।
गांव प्रधान सत्यवीर गंगवार बताते हैं कि जिस तालाब में गांव वालों ने काम किया वह सरकारी तालाब नहीं है, लेकिन श्रमदान से सूरत बदल गई। गांव के सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि तालाब की निकली गीली मिट्टी को लोगों ने अपने घरों के खपरैल के लिए प्रयोग किया। राजनारायण बताते हैं कि गांव की ममता, अंजलि, आरती, सपना, निकिता, सुनीता, नीत, कीर्ति, हंसमुखी, बबली और प्रियंका जैसी लड़कियों और महिलाओं ने श्रमदान में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बरेली के इस गांव ने श्रमदान से किया कमाल
बरेली जिले के सहसिया हुसैनपुर गांव के राजनारायण बताते हैं कि 40 दिन तालाब को खोदने के लिए काम किया गया था, जिसमें गांव के सौ से अधिक लोग जुटे थे। पहले कठोर मिट्टी को गीला करने के लिए बारिश का इंतजार किया गया और फिर फावड़े और कुदाल लेकर लोगों ने कायाकल्प कर दिया। इस गांव में दो सरकारी तालाब हैं लेकिन वहां इतना पानी नहीं है।