ये फॉर्म्युला हो जाए हिट तो मोदी-शाह की जोड़ी से राहुल कर सकते हैं मुकाबला

बिहार की एक और यूपी की दो लोकसभा सीटों पर आज (11 मार्च) उपचुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए बिहार में जहां एनडीए से टूटकर जीतनराम मांझी ने महागठबंधन का दामन थाम लिया है वहीं यूपी में सपा-बसपा ने 25 साल पुरानी दुश्मनी को भुला दिया है। यूपी के गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीटों पर मायावती की बसपा ने सपा को समर्थन किया है। हालांकि, कांग्रेस ने यूपी में एकला चलो की राह पकड़ी है जबकि बिहार में महागठबंधन के साथ है। बिहार की भभुआ विधान सभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में महागठबंधन ने कांग्रेस उम्मीदवार को खड़ा किया है। यानी सियासी नफा-नुकसान के स्थानीय आंकड़ों के हिसाब से कांग्रेस ने यूपी, बिहार में गठबंधन किया है।

गुजरात चुनावों में भी कांग्रेस ने क्षेत्रीय छत्रपों से दोस्ती की थी। इसका फायदा भी कांग्रेस को हुआ। लिहाजा, माना जा रहा है कि पार्टी मिशन 2019 के तहत उन राज्यों में गठबंधन कर सकती है जहां फिलहाल नंबर दो की पार्टी है। 2014 में गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया था लेकिन मौजूदा दौर में जब कांग्रेस ने पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर से दोस्ती की तो विधानसभा में न केवल कांग्रेस की सीट बढ़ी बल्कि वोट प्रतिशत भी बढ़ गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में कांग्रेस को 33.45 फीसदी वोट मिले थे जो 2017 में विधान सभा चुनाव में बढ़कर करीब 42 फीसदी हो गए। अगर कांग्रेस ने 2019 में सपा-बसपा और एनसीपी के साथ गुजरात में भी गठजोड़ किया तो वोट प्रतिशत का यह आंकड़ा न केवल बढ़ सकता है बल्कि 26 संसदीय सीटों में से कुछ पर कांग्रेस और सहयोगियों का कब्जा भी हो सकता है। बता दें कि असेंबली चुनावों में बीजेपी को यहां 49 फीसदी वोट मिले थे।

इसी तरह कांग्रेस अगर राजस्थान में बसपा, पंजाब में भी बसपा, महाराष्ट्र में एनसीपी, सपा और बसपा से गठजोड़ करे तो यूपीए की सीटों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। गौरतलब है कि इन राज्यों में लोकसभा की कुल 84 सीटें हैं जबकि इनमें से केवल 8  (पंजाब-4, राजस्थान-2 महाराष्ट्र-2) पर ही कांग्रेस का कब्जा है। राजस्थान में दो सीटें हालिया उपचुनाव में कांग्रेस ने जाती हैं, इससे पहले उसके खाते में एक भी सीट नहीं थी। महाराष्ट्र में एनसीपी की 4 सीटें जोड़ दें तो यह आंकड़ा 12 हो जाता है। महाराष्ट्र में शिवसेना एनडीए से अलग हो चुकी है। दलितों और किसानों का मुद्दा गहराया हुआ है। लिहाजा, सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी फैक्टर भी हावी है। 2014 के चुनावों में बीजेपी को महाराष्ट्र में 27.30 फीसदी वोट मिले थे। इसके साथ शिवसेना का भी 20 फीसदी अलग से था। कांग्रेस को 18.10 फीसदी और एनसीपी को 16 फीसदी वोट मिले थे। महाराष्ट्र में दलितों-मुस्लिमों और अन्य ओबीसी को जोड़ लें तो यूपीए को 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिल सकते हैं।

बिहार में कांग्रेस पहले से ही गठबंधन में है। दलित नेता जीतनराम मांझी का साथ मिलने से वोट प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। उत्तर प्रदेश की राजनीति ने अगर स्थाई तौर पर 2019 तक करवट लिया और गठबंधन बना तो 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस-सपा-बसपा गठबंधन को मौजूदा सात सीटों से कहीं ज्यादा मिल सकता है क्योंकि तीनों दलों के वोट प्रतिशत को जोड़ दें तो यह आंकड़ा (सपा-22.20 फीसदी, बसपा-19.60 फीसदी, कांग्रेस-7.50 फीसदी) 49 फीसदी से ज्यादा हो जाता है।

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