योगी और केशव की सीटों पर उपचुनाव की बजी डुगडुगी, बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की खाली लोकसभा सीटों पर उपचुनाव की डुगडुगी बज गई है। चुनाव आयोग की अधिसूचना के मुताबिक योगी की गोरखपुर और केशव की फूलपुर सीट के लिए 11 मार्च को मतदान होगा, वहीं 14 को मतगणना। यूपी सरकार में ओहदा लेने के बाद पिछले साल उन्हें सांसदी से इस्तीफा देना पड़ा था। भले ही मार्च में यूपी में सरकार बनी थी, लेकिन दोनों नेताओं ने जुलाई में हुए राष्ट्रपति चुनाव के बाद ही सदस्यता छोड़ी थी। अब सबसे बड़ा सवाल है कि भाजपा योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर और केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर लोकसभा सीट से किसे उम्मीदवार बनाती है।
चर्चाओं के मुताबिक दोनों नेता अपनी सीटों पर किसी नजदीकी को ही लड़वाने के मूड में हैं। हालांकि उनकी ओर से प्रस्तावित नामों को पार्टी संसदीय दल की बैठक में मंजूरी मिलती है या नहीं यह वक्त बताएगा। भाजपा दोनों सीटों को हर हाल में अपने पास रखना चाहेगी। क्योंकि इसके नतीजे अगर पक्ष में रहे तो 2019 के लोकसभा चुनाव में माहौल बनाए रखने में मदद मिलेगी वहीं अगर नतीजे नकारात्मक हुए तो फिर विपक्ष इसे योगी सरकार के खिलाफ माहौल बताकर भुनाने की कोशिश करेगा। अगर दोनों सीटों की सूरतेहाल की बात करें तो गोरखपुर लोकसभा सीट पर 1998 से लगातार योगी जीतते रहे हैं। उनसे पहले इस सीट का तीन बार उऩके गुरु महंत अवैद्यनाथ प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। चूंकि इस सीट से मुख्यमंत्री योगी की सीधे तौर पर प्रतिष्ठा जुड़ी है, इस नाते जाहिर सी बात है कि विपक्ष यहां बीजेपी को हराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने की तैयारी में है। फूलपुर सीट की बात करें तो यह अमूमन नेहरू परिवार और कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती रही। नेहरू के निधन के बाद बहन विजय लक्ष्मी पंडित, फिर 1971 में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। पहले नेहरू ने इस सीट पर लगातार तीन चुनाव जीते, फिर उनके बाद राममपूजन पटेल ने हैट्रिक बनाई। 1996 से 2004 के बीच सपा के कब्जे में यह सीट रही। 2009 में बसपा ने और फिर 2004 में पहली बार भाजपा ने यहां फतह हासिल की। कहा जा रहा है कि पहली बार हाथ में आई इस सीट को अब भाजपा किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहती।