यौन हिंसा के 99 फीसद मामलों की पुलिस में नहीं की जाती है शिकायत, ज्यादातर में पति ही जिम्मेदार

नाबालिग से दुष्कर्म में विवादास्पद कथावाचक आसाराम को दोषी करार दिया गया है। महिलाओं और बच्चियों के साथ यौन हिंसा और बलात्कार के लगातार कई मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन, देश में यौन हिंसा की स्थिति इससे कहीं ज्यादा भयावह है। ‘मिंट’ के अनुसार, 99.1 फीसद मामलों में पुलिस में शिकायत ही दर्ज नहीं कराई जाती है। इनमें से ज्यादातर मामलों में हिंसा करने वाला पीड़िता का पति ही होता है। आंकड़ों के अनुसार, भारतीय महिलाओं में पति की हिंसा का शिकार होने की आशंका 17 गुना ज्यादा रहती है। नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे के तहत वर्ष 2015 से 2016 के बीच 79,729 महिलाओं से शारीरिक और यौन हिंसा के बारे में विस्तार से सवाल पूछे गए थे। मैरिटल रेप और हिंसा की घटनाओं को छोड़ भी दिया जाए तो महिलाओं द्वारा यौन हिंसा की शिकायत पुलिस में देने का प्रतिशत बेहद कम है। ऐसी घटनाओं में सिर्फ 15 फीसद पीड़िता ही पुलिस में शिकायत दर्ज कराती हैं।

पुलिस पर अविश्वास बड़ी वजह: एनएफएचएस के आंकड़ों से ऐसे मामलों में पीड़िता के मन में पुलिस के प्रति अविश्वास की बात भी सामने आती है। ऐसे मामलों में आरोपियों को सजा मिलने का बेहद कम अनुपात इस बात को दर्शाता है। यह यौन हिंसा के मामलों की पुलिस में शिकायत न करने की प्रमुख वजहों में से एक है। इसके अलावा साक्षरता भी प्रमुख मुद्दा है। जिन राज्यों में महिला साक्षरता दर कम है, उन राज्यों में यौन हिंसा मामलों की पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की दर भी कम पाई गई है। बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों की स्थिति बहुत खराब है। इन राज्यों में महज 0.5 फीसद मामलों में ही शिकायत दर्ज कराई जाती है, जबकि तीनों राज्यों की कुल आबादी तकरीबन 40 करोड़ है। हालांकि, महिला साक्षरता दर ज्यादा होने के बावजूद तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में यौन हिंसा की घटनाओं की शिकायत दर्ज कराने की दर कम है। कठुआ और उन्नाव दुष्कर्म कांड के बाद यौन हिंसा से जुड़े मामलों की शिकायत और पुलिस के रवैये पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। हालांकि, केंद्र सरकार ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले में मौत की सजा का प्रावधान को लेकर अध्यादेश जारी किया है।

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