राजस्थान: खुले में शौच किया तो सरकार नहीं देगी राशन, मनरेगा में काम, गिरफ्तारी भी संभव
राजस्थान में स्वच्छता अभियान के लक्ष्य को पूरा करने के लिए राज्य सरकार अजीबोगरीब तरीके अपना रही है। अगर राजस्थान में कोई शख्स खुले में शौच करते हुए पकड़ा जा रहा है तो उसे कोटे के तहत मिलने वाला राशन बंद कर रही है। यही नहीं अगर इस शख्स को मनरेगा के तहत काम मिला है तो खुले में शौच करने के जुर्म में सरकार ये काम भी छीन ले रही है। खुले में शौच मुक्त टारगेट को पूरा करने के लिए राजस्थान सरकार कई और सख्त उपाय अपना रही है। इनके तहत दोषी व्यक्ति का बिजली कनेक्शन काटा जा सकता है यहीं नहीं ऐसे व्यक्तियों की गिरफ्तारी पर भी सरकार विचार कर रही है। कई मामलों में इनपर जुर्माना भी लगाया गया है। दरअसल 23 मई को तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू ने स्वच्छ भारत सर्वे में राजस्थान के पिछड़ने पर नाराजगी जताई थी इसके बाद राज्य सरकार पर अपना परफॉर्मेंस सुधारने का दवाब बढ़ा इसकी वजह से वसुंधरा राजे का प्रशासन इस वक्त कथित स्वच्छता के मामले में तेजी दिखा रहा है।
राजस्थान में स्वच्छ भारत अभियान के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी मुख्य रुप से पंचायती राज्य विभाग और शहरी विकास और आवास विभाग के पास है। इन मामलों के मंत्री श्रीचंद कृपलानी ने कहा है कि बिजली काट देने जैसी दंडात्मक कार्रवाई के बारे में उन्हें पता नहीं है। उन्होंने कहा कि एक या दो वाकये हो सकते हैं लेकिन उन्होंने या उनके विभाग ने ऐसा कोई आदेश नहीं जारी किया है। बता दें कि राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर तहसील में 20 अगस्त को खुले में शौच करने के जुर्म में सीआरपीसी की धारा 151 के तहत 6 लोगों को गिरफ्तार किया गया। दो दिन पहले ही जहाजपुर के सब डिविजनल ऑफिसर करतार सिंह ने गांगीथाला गांव में कई लोगों के बिजली काटने के आदेश दिये थे क्योंकि कई नोटिस के बावजूद इनके शौचालय का निर्माण कार्य 19 फीसदी ही पूरा हुआ था। हालांकि लोगों के हंगामे के बाद डीएम मुक्तानंद अग्रवाल ने इस आदेश को वापस ले लिया था।
गिरफ्तार लोगों में बांसी लाल मीणा का कहना है कि उसने टॉयलेट तो बनवा लिये थे लेकिन इसमें पानी का इंतजाम करने के लिए पैसे नहीं थे, एक दिन वो खेतों में काम कर रहा था तभी अधिकारी आकर उसे ले गये, उसे कई घंटों तक थाने में रखा गया। मीणा अब नजदीक के हैंडपंप से पानी लाता है, जबकि टॉयलेट में दरवाजे लगाने के लिए उसे कर्ज लेना पड़ा। मीणा कहता है कि एक टॉयलेट बनाने के लिए सरकार से 12 हजार रुपये मिलते हैं, फिर भी महज 60 फीसदी परिवारों के पास ही टॉयलेट बन पाया है।