राज्यसभा में एकजुट हुई बीजेपी-कांग्रेस! चुनाव आयोग के खिलाफ खोला मोर्चा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (30 जुलाई, 2018) को चुनाव आयोग की उस अधिसूचना पर सवाल उठाए जिसमें राज्यसभा चुनावों के लिए बैलट पेपर में ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) की अनुमति दी गई है। कोर्ट ने कहा कि नोटा की शुरुआत इसलिए की गई थी ताकि प्रत्यक्ष चुनावों में कोई व्यक्ति वोटर के तौर पर इस विकल्प का इस्तेमाल कर सके। इस मामले में चुनाव आयोग के खिलाफ कांग्रेस और भाजपा भी एक जुट हो गई हैं। दोनों पार्टियों ने यह कहते हुए राज्यसभा में ‘नोटा’ का ऑप्शन खत्म करने की मांग है कि अप्रत्यक्ष चुनावों के लिए यह ठीक नहीं है। अब सरकार और कांग्रेस के साथ आने पर चुनाव आयोग ने राज्यसभा चुनावों में नोटा विवाद से खुद को अलग कर लिया है, जिसे जनवरी 2014 में अधिसूचित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में पीयूसीएल के फैसले में आम चुनावों में मतदाताओं के लिए नोटा का आदेश दिया था।
सोमवार को न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, ‘किसी असंवैधानिक कृत्य में एक संवैधानिक न्यायालय पक्ष क्यों बने….यदि कोई व्यक्ति वोट नहीं डालता है तो उसे पार्टी से निकाला जा सकता है। लेकिन नोटा लाकर आप (चुनाव आयोग) वोट नहीं डालने के कृत्य को वैधता प्रदान कर रहे हैं।’ पीठ ने कहा कि नोटा का विकल्प प्रत्यक्ष मतदान में वोट डालने वाले व्यक्तियों के लिए शुरू किया गया था। कोर्ट ने कहा कि राज्यसभा और विधान परिषदों के चुनावों में खुली बैलट वोटिंग प्रणाली के विचार के पीछे भ्रष्ट गतिविधियों के कारण क्रॉस-वोटिंग पर रोक लगाना था।
वहीं प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले राज्यसभा चुनावों के दौरान गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक रहे शैलेश मनुभाई परमार की अर्जी पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कांग्रेस ने इस राज्यसभा चुनाव में मौजूदा सांसद अहमद पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया था। परमार ने चुनाव आयोग की अधिसूचना में बैलट पेपरों में नोटा का विकल्प देने को चुनौती दी थी।