राष्ट्रपति और संसद ही एससी-एसटी के अधिकारों में कर सकती है कटौती, कोई और नहीं- मोदी सरकार
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अनुसूचित जाति, जनजाति के सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता है। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि ऐसा कर वंचित समाज को लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ को वेणुगोपाल ने बताया कि राष्ट्रपति और संसद के अलावा कोई भी शक्ति अनुसूचित जाति, जनजाति को मिलने वाला लाभ से वंचित नहीं कर सकता है। अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि हालांकि एससी-एसटी समुदाय के कुछ लोग इससे उबर चुके हैं, बावजूद जाति और पिछड़ेपन का ठप्पा अभी भी उन पर लगा हुआ है। इसलिए उनसे यह अधिकार नहीं छिना जा सकता है।
अटॉर्नी जनरल ने संविधान पीठ को सूचित किया कि ऐसा कोई फैसला नहीं है जो यह कहता हो कि एससी/एसटी समुदाय के समृद्ध लोगों को क्रीमी लेयर सिद्धांत के आधार पर आरक्षण का लाभ देने से इनकार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या क्रीमी लेयर सिद्धांत को लागू करके उन लोगों को लाभ से वंचित किया जा सकता है जो इससे बाहर आ चुके हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एससी/एसटी समुदाय के पिछड़े लोगों तक आरक्षण का लाभ पहुंच सके। कोर्ट में वेणुगोपाल ने कहा, “उनलोगों को अपनी ही जाति में विवाह करना होता है। एससी-एसटी समुदाय का अगर कोई व्यक्ति धनी हो भी गया तो वह ऊंची जाति में विवाह नहीं कर सकता। हकीकत यही है कि कुछ लोगों का स्तर ऊंचा हो जाने के बावजूद उनपर से जाति और पिछड़े होने का ठप्पा नहीं हटता।”
संविधान पीठ में जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी हैं। संविधान पीठ यह देख रही है कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में ‘क्रीमी लेयर’ से जुड़े उसके 12 वर्ष पुराने साल 2006 के नागराज बनाम केंद्र के फैसले को सात सदस्यीय पीठ द्वारा फिर से देखने की जरूरत तो नहीं है।