राष्ट्रपति रहते नरेंद्र मोदी के जिस विचार का किया था समर्थन, अब उसके खिलाफ बोले प्रणव मुखर्जी
राष्ट्रपति रहने के दौरान प्रणव मुखर्जी ने लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचार का समर्थन किया था। मगर, अब बतौर पूर्व राष्ट्रपति उन्होंने इसके खिलाफ खिलाफ बोला है। प्रणव मुखर्जी के मुताबिक केंद्र और राज्यों की सरकारों का एक साथ चुनाव व्यावहारिक नहीं हैं। कुछ परिस्थितियों में इससे लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन भी होगा। सरकार गिरने की स्थिति में शासन में जनता अपने प्रतिनिधित्व से वंचित होगी।
राष्ट्रपति की कुर्सी पर रहने के दौरान दो ऐसे मौके रहे, जब प्रणव मुखर्जी ने एक साथ चुनाव की बात का समर्थऩ किया। सितंबर, 2016 में शिक्षक दिवस पर छात्रों से मुखातिब होने के दौरान उन्होंने एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाने की वकालत की थी। कहा था कि बार-बार चुनाव होते रहने से आचार संहिता प्रभावी होती है। जिससे सरकारी काम लटक जाते हैं। उन्होंने तब सभी पार्टियों से इस मुद्दे पर एक साथ बैठकर निर्णय लेने की अपील की थी। फिर 2017 में गणतंत्र दिवस के मौके पर भी उन्होंने एक साथ चुनाव के विचार का समर्थन करते हुए कहा था,’यह चुनाव सुधारों को लागू करने पर बहस का उपयुक्त समय है, ताकि आजादी के शुरुआती दशकों की तरह लोकसभा और राज्य विधानसभाओँ के चुनाव एक साथ की व्यवस्था लागू हो।’
इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस की ओर से शुक्रवार को आयोजित लेक्चर में उन्होंनें पूर्व में कही अपनी ही बातों के विपरीत विचार व्यक्त किए। प्रणव मुखर्जी ने कहा- देश में 29 राज्य हैं, हर विधानसभा के पांच साल चलने की उम्मीद होती है, मगर ऐसा नहीं हो पाता। किसी भी कानून या अधिनियम के संशोधन से आप यह जरूर सुनिश्चित कर सकते हैं कि भविष्य में किसी राज्य सरकार का समय से पूर्व पतन नहीं होगा। लेकिन काबिलेगौर है कि राष्ट्रपति शासन कब तक लगेगा, चार साल, साढ़े चार साल या फिर दो साल? लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन जैसी व्यवस्था लोकतंत्र की भावना के खिलाफ होगा। वहीं चुनाव पेंडिंग रखने से जनता सरकार में अपनी नुमाइंदिगी से वंचित रहेगी। 37 साल तक सांसद रहे मुखर्जी ने कहा कि एक साथ चुनाव की व्यवस्था लागू करना टेढ़ी खीर है। कानूनों में बदलाव से भी पांच साल तक विधानसभाओं के चलने की गारंटी नहीं मिलती। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा ने राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता बरते जाने की बात की। कहा कि ऑडिट हुए बगैर चंदे के खेल में पारदर्शिता नहीं आएगी।