राष्ट्रवाद की भट्ठी में बच्चों को झोंकता तुर्की
किसी भी देश की जिम्मेदारी बच्चों को बचाना है, उन्हें मारना नहीं। आप बच्चों की मौत की दुआ नहीं करते है और ना ही उनकी मौत के लिए “इंशा अल्लाह” कहते हैं। लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोआन ने भरी सभा में मंच पर एक छह साल की बच्ची से कहा, “अगर तुम तुर्की के लिए शहीद हो गई तो तुम्हें भी इंशा अल्लाह तुर्की के झंडे में लपेटा जाएगा। यह सच है ना?” बच्ची ने सिर पर लाल टोपी और सैन्य वर्दी पहनी हुई थी। उसकी आंखों में आंसु थे। लेकिन एर्दोआन के लिए सामने सभा में लहराते तुर्की के झंडे और रगों में दौड़ता राष्ट्रवाद था। यही तो एर्दोआन को चाहिए और इसी के चलते पिछले डेढ़ दशक से तुर्की में उनका एकछत्र राज कायम है। यह बात सही है कि तुर्की में एर्दोआन की एकेपी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से स्थिरता आई है और आर्थिक हालात बेहतर हुए हैं। लेकिन सामाजिक मोर्चे पर तुर्की को आर्थिक संपन्नता की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।
जिस तुर्की को कभी मुस्लिम दुनिया में एक उदार और धर्मनिरपेक्ष समाज की मिसाल माना जाता है, उस पर लगातार रूढ़िवाद और इस्लामी कट्टरपंथ का रंग चढ़ रहा है। जिस तुर्की में कभी बुरका और नकाब पहनने पर रोक थी, वहीं आज सड़कों पर ज्यादा से ज्यादा महिलाएं सिर को ढंके हुए नजर आती हैं। एकेपी पार्टी के सत्ता में आने से पहले तुर्की की राजनीति में सेना का वर्चस्व था जो खुद को देश की धर्मनिरपेक्षता का संरक्षक मानती थी। लेकिन एर्दोआन के सत्ता में आने के बाद तुर्की की सेना लगातार कमजोर होती गई. जुलाई 2016 में सेना के कुछ तत्वों ने एर्दोआन का तख्तापलट करने की कोशिश की थी जो नाकाम रहा। तुर्क राष्ट्रपति ने इसे अपने विरोधियों को कुचलने के एक और मौके के तौर पर इस्तेमाल किया।
इन दिनों सीरिया के कुर्द इलाकों में तुर्क सेना के अभियान को लेकर तुर्की में राष्ट्रवादी भावनाएं उफान पर हैं। सीरिया में आज इस्लामिक स्टेट लगभग आखिरी सांसें ले रहा है तो उसमें कुर्दों का भी योगदान है। आईएस के खिलाफ लड़ाई में कुर्दों को अमेरिका ने हथियार दिए। लेकिन तुर्की का कहना है कि सीरिया के कुर्द तुर्की के भीतर सक्रिय कुर्द विद्रोहियों की मदद कर रहे हैं, जिससे उसकी सुरक्षा को लेकर खतरे पैदा हो गए हैं। इसीलिए तुर्की ने सीरिया में अपनी सेना उतारी है। तुर्की के तीस से ज्यादा सैनिक अब तक इस लड़ाई में मारे गए हैं। राष्ट्रपति के तौर पर एर्दोआन को पूरा हक है कि वह अपनी सेना का हौसला बढ़ाएं। लेकिन सियासी प्रोपेगैंडा के लिए बच्चों का इस्तेमाल करने के लिए उनकी बहुत आलोचना हो रही है।
हाल के दिनों में एर्दोआन की बहुत सी सभाओं में बच्चों को कमांडों वर्दी में लाया जाता है और उनसे राष्ट्रवादी कविताएं गंवाई जाती हैं। पिछले दिनों तुर्की के सरकारी टीवी चैनल ने एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें एक बच्चा तुर्क राष्ट्रपति को दुआएं दे रहा है। इसा नाम का छह साल का बच्चा कहता है, “मैं राष्ट्रपति का शुक्रिया अदा करता हूं जो मेरे दादा जैसे हैं। अगर मैं स्कूल जा पा रहा हूं और हिफाजत से रह रहा हूं तो इसके लिए सबसे पहले खुदा और फिर राष्ट्रपति का शुक्रिया अदा करता हूं।” और इसके बाद कहरामनमास शहर में रैली के दौरान तुर्क राष्ट्रपति छह साल की बच्ची से पूछते हैं, “क्या तुम शहीद होना चाहती हो?”
बच्चों को इस तरह सियासी मकसद के लिए इस्तेमाल करने पर बहुत से लोगों ने ट्विटर पर अपनी नाराजगी जाहिर की है। एक यूजर ने लिखा कि देश इसलिए नहीं होता कि वह बच्चों से मरने के लिए कहे, बल्कि उसकी जिम्मेदारी बच्चों को एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए सक्षम बनाना है। एक अन्य ट्वीट में कहा गया- “बालिका वधुएं, बच्चों की लाशें, बच्चों का उत्पीड़न, बच्चों की शहादत, यह (तुर्की) देश नहीं, बल्कि बच्चों के लिए एक पिंजरा है।” लेकिन एर्दोआन के समर्थकों की भी कमी नहीं है। एर्दोआन के तुर्की में विरोधियों के लिए कोई जगह नहीं है। पिछले दिनों सरकार समर्थक एक टीवी एंकर ने इस्तांबुल के धर्मनिरपेक्ष इलाकों के लोगों को गद्दार बताते हुए उन्हें मारने तक की बात कह डाली।
सीरिया में तुर्की की सेना के अभियान में आम लोगों की मौतों के आरोपों को ठुकराते हुए एंकर ने कहा, “अगर हमें आम लोगों को ही मारना होता तो हम इसकी शुरुआत (इस्तांबुल में) चीहांगीर, निसानतासी और एतिलर से करते, जहां बहुत सारे गद्दार रहते हैं। गद्दार तुर्की की संसद में भी हैं।” इस एंकर की बात न सिर्फ सरकार विरोधियों को बल्कि एकेपी पार्टी के कई नेताओं को भी पसंद नहीं आई। एंकर पर तुरंत नफरत भड़काने के आरोप में मुकदमा शुरू हो गया। लेकिन अगर राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काकर एर्दोआन सियासी फायदे की फसल काटना चाहते हैं तो फिर उम्मीद भी क्या की जा सकती है। बस एंकर से गलती ये हो गई कि उसने सरेआम टीवी पर यह बात कह दी। वरना विरोधियों को गद्दार कहने वाले तो तुर्की में और भी न जाने कितने लोग होंगे। पर्दे के पीछे शायद एर्दोआन को भी इससे दिक्कत नहीं होगी क्योंकि यही तो उनके लिए सत्ता में बने रहने की चाबी है।