रुपए में सहगल, चवन्नी में अशोक कुमार

यह संयोग ही है कि 13 अक्तूबर को अशोक कुमार का जन्म हुआ था और 13 अक्तूबर को ही किशोर कुमार का निधन। अशोक कुमार बॉम्बे टॉकीज की लैब में असिस्टेंट थे और 1936 में नजमुल हसन के ‘जीवन नैया’ से हटने के कारण मजबूरी में हीरो बना दिए गए थे। इससे पहले हिमांशु राय ने उन्हें एक्टर बनाना चाहा था, मगर जर्मन फिल्मकार और बॉम्बे टॉकीज में निर्देशक रहे फ्रांज आॅस्टिन के यह कहने के बाद कि अशोक कुमार के जबड़े बहुत चौड़े हैं और वह कहीं से भी हीरो नहीं लगते हैं, हिमांशु राय ने उन्हें लैब असिस्टेंट बना दिया था। बाद में अशोक ने अभिनय को गंभीरता से लिया। दूसरी ओर उनके सबसे छोटे भाई किशोर कुमार ने कहीं से भी संगीत नहीं सीखा मगर चोटी के पार्श्वगायकों में से एक बने। किशोर मशहूर गायक कुंदनलाल सहगल के अनन्य भक्त थे और उन्हें गुरु मानते थे। बहुत कम उम्र से वह उनके गाने गाते थे।

परिवार में तीन भाइयों की एक बहन गीता भी थी। गीता ने ही किशोर कुमार और अनूप कुमार को संगीत सीखने के लिए प्रेरित किया। गीता की शादी शशधर मुखर्जी से हुई थी। परिवार के लोग और करीबी मित्र किशोर कुमार से अक्सर गाने सुनने की फरमाइश करते थे। किशोर कुमार गाना सुनाते थे, मगर इसके लिए पैसे भी लेते थे। रेट फिक्स था। सहगल का गाना गवाओगे तो एक रुपया लगेगा, अगर बड़े भाई अशोक कुमार का गाना सुनना है तो यह काम एक चवन्नी में ही हो जाता था।

हालांकि अशोक कुमार ने किशोर कुमार के गायन को कभी गंभीरता से नहीं लिया था। उनके जीजा शशधर मुखर्जी ने बॉम्बे टॉकीज छोड़कर राय बहादुर चुन्नीलाल, अशोक कुमार और ज्ञान मुखर्जी की पार्टनरशिप में गोरेगांव में फिल्मिस्तान स्टूडियो खोल लिया था। जब भी फिल्मिस्तान की फिल्मों में गाने की बात आती तो किशोर कुमार को कोरस गायकों के बीच खड़ा कर दिया जाता था। अकेले गाने का मौका नहीं मिलता था। उनसे कहा जाता था कि गाते तो अच्छा हो, पर तुम्हारी आवाज में वह दम नहीं है। हालांकि बाद में किशोर कुमार ने फिल्मिस्तान की फिल्मों में खूब गाया।
किशोर कुमार को गाना पसंद था, अभिनय नहीं। जबकि अशोक कुमार उन पर दबाव डालते थे कि अभिनय पर ध्यान दो क्योंकि गायकों का कोई भविष्य नहीं है। एक बार ‘कनीज’ फिल्म का गाना गाते समय किशोर कुमार ने योडलिंग करते हुए बमचिक बमचिक जैसा किया उसके बाद मूल गाना गाने लगे। फिल्म के निर्देशक किशन कुमार को यह गाना इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे किशोर कुमार पर फिल्मा डाला था। इस तरह किशोर कुमार पहली बार परदे पर उतरे थे।
अशोक कुमार का वाद्य यंत्रों का एक स्टोर था। किस्सा मशहूर है कि एक दिन सहगल उनके यहां हारमोनियम खरीदने पहुंचे। अशोक ने उनसे कहा कि अगर सहगल उन्हें अपना कोई गाना सुना दें, तो वह हारमोनियम उन्हें उपहार में दे देंगे। सहगल ने उन्हें अपने घर आने की दावत दी। सहगल के यहां जाने के लिए अनूप कुमार और किशोर कुमार भी तैयार हो गए। सहगल ने उस दिन कुमार परिवार को अपने गाने सुनाए। किशोर कुमार तो अपने गुरु से मिल कर गदगद हो गए। किशोर कुमार ने भी सहगल की फिल्म ‘भाभी’ का गाना ‘मन मूरख क्यों दीवाना…’ उन्हें सुनाया। गाना सुनकर सहगल ने उन्हें रियाज करने की सलाह दी। इसके कुछ दिनों बाद तक किशोर कुमार पर रियाज करने का भूत सवार हो गया था।

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