रेप पीड़िताओं को न्याय के लिए नहीं करना पड़ेगा वर्षों तक इंतजार, मोदी सरकार ने उठाया ये कदम
भारत यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच के लिए नए मानक बना रहा है। इससे जांच को और सशक्त बनाने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही डीएनए टेस्ट के मामलों की लंबित जांचों को समय से पूरा करने में भी मदद मिलेगी। सरकार ऐसी कई लैब बनाने जा रही है, जिन्हें यौन उत्पीड़न के मामलों में डीएनए पर आधारित सबूतों पर जांच की महारत होगी। इसके साथ ही सरकार ने जांचकर्ताओं के लिए नई गाइडलाइन भी जारी की है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि जांचकर्ता ही सबूतों को प्रदूषित न करें। ये बातें थॉमसन रायटर्स ने अपनी रिपोर्ट में एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखी हैं।
भारत के प्रधान फरेंसिक वैज्ञानिक एसके जैन के हवाले से थॉमसन रायटर्स ने लिखा है कि हर साल यौन उत्पीड़न के 25,000 से ज्यादा मामले जांच के लिए डीएनए लैब में आते हैं। इनमें से सिर्फ आधे मामलों की ही जांच हो पाती है। जबकि 20 फीसदी लैब रिपोर्ट कोर्ट में टिक नहीं पाती है। क्योंकि सबूत उठाते समय असावधानी या अन्य अवयव मिल जाने के कारण कई बार सैंपल खराब हो जाते हैं। हम लैब की क्षमता बढ़ाने और विशेषज्ञों की नियुक्ति का काम अगले चार महीनों में करेंगे। ताकि इन कमियों को दूर किया जा सके।” वहीं यौन उत्पीड़न के मामलों में जांच करने वालों के लिए भी केंद्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला ने नई गाइडलाइन जारी की हैं। इस गाइडलाइन में नमूनों जैसे वैजाइनल स्वैब, कांडोम, बालों और कपड़ों के सही ढंग से रखरखाव के तरीके बताए गए हैं।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने जून में घोषणा की थी कि कि वह महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच के लिए छह लैब बनवाएगी। ये छह लैब मिलकर एक साल में 50,000 से ज्यादा मामलों की जांच कर सकेंगी। देश की पहली ऐसी लैब चंडीगढ़ स्थित केन्द्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला के परिसर में बनाई जाएगी। चंडीगढ़ की लैब देश की पांच अन्य शहरों में स्थापित होने वाली लैब के लिए मॉडल के तौर पर काम करेगी। छह लैब के चालू होने के बाद केन्द्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला हर साल 160 से बढ़कर 2000 मामलों की जांच कर सकेगी।
भारत ने साल 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया रेप कांड के बाद महिला सुरक्षा पर अपना विशेष ध्यान केंद्रित किया है। फिर भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, रेप के चार मामलों में से सिर्फ एक हो सजा हो पाती है। सरकार के इस कदम का वकीलों और नारी अधिकार संगठनों ने भी स्वागत किया है। सर्वसुविधा युक्त प्रयोगशालाओं और प्रशिक्षित स्टाफ के अभाव में सैकड़ों डीएनए नमूने और यौन उत्पीड़न के मामले जांच के अभाव में लटके रहते हैं।