रोहिंग्‍या मुस्लिमों का दर्द: भागते हुए डूबी नाव, मृत दूधमुंहे बेटे को सीने से लगा कर बांग्लादेश पहुंची मां

म्यांमार में हो रहे हमलों से बचकर एक रोहिंग्या मुस्लिम मां अपने पांच दिन के बेटे को गोद में लेकर अपने पति और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ एक नाव में सवार होकर समुद्र के रास्ते बांग्लादेश के लिए निकली थी। लेकिन जैसे ही उनकी नाव बांग्लादेश पहुंचने वाली थी, वह समुद्र में डूब गई। समुद्र में डूबने से रोहिंग्या मुस्लिम महिला के पांच दिन के बेटे की मौत हो गई। बाकी नाव में सवार करीब दो दर्जन लोग बच गए। ये सब लोग लहरों के सहारे किनारे पर पहुंच गए। नाव किनारे पर आकर डूबी थी।

हमीदा के पति नासिर अहमद, दो जवान बेटे और 18 अन्य शरणार्थी नाव के जरिए बंगाल की खाड़ी को पार करके बांग्लादेश के शाह पोरिर द्वीप आ रहे थे। जैसे ही नाव किनारे पर पहुंचने वाली थी, वह डूब गई। जिससे उसमें सवार सभी लोग पानी में गिर गए। उस वक्त रॉयटर्स के फोटोग्राफर मोहम्मद पोनिर हुसैन म्यांमार से बांग्लादेश आने वाले शरणार्थियों को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर चिल्ला रहा है कि एक नाव समुद्र में डूब गई है। इसके बाद वह फोटोग्राफर वहां मौके पर पहुंचा। फोटोग्राफर ने बताया कि ‘मैं वहां पहुंचा तो देखा कि लोग एक बच्चे का शव सीने से लगाकर रो रहे हैं।’ इसके बाद फोटोग्राफर ने हमीदा की तस्वीर क्लिक की, जिसने अपने मृत बेटे को सीने से लगा रखा था।

बता दें, म्यांमार के रखाइन प्रांत में सांप्रदायिक हिंसा के कारण 25 अगस्त से लेकर अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और म्यांमार से 410,000 से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों ने भागकर बांग्लादेश में शरण ले रखी है। रोहिंग्या मुस्लिमों का आरोप है कि उन पर म्यांमार की सेना हमला कर रही है, वह पूरे के पूरे गांवों को उजाड़ दे रही है। उनमें आग दे रही है और जवान लोगों को गोली मार रही है। इसके बाद यह संकट खड़ा हुआ। रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश की ओर रुख कर रहे हैं। इसके बाद म्यांमार की वैश्विक स्तर पर आलोचना होने लगी।

इसी नाम में सवार नासिर अपने परिवार के साथ आए थे। (Photo Source: REUTERS)

मंगलवार को म्यांमार की की नेता आंग सान सू ची ने शरणार्थी संकट पर समर्थन के लिए वैश्विक समुदाय से अपील की कि वह धार्मिक और जातीय आधार पर उनके देश को एकजुट करने में मदद करे। उन्होंने सेना के अभियानों के कारण देश छोड़कर भागने को मजबूर हुए कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस आने का प्रस्ताव भी दिया। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सू ची की बेघर कर दिए गए रोहिंग्या समुदाय के मामले में सार्वजनिक तौर पर वक्तव्य ना देने या सेना से संयम बरतने की अपील ना करने को लेकर व्यापक निंदा हुई है।

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