रिकॉर्डतोड़ बहुमत के बावजूद यूपी में तीसरी बार ”पिछले दरवाजे” वाला सीएम
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा के साथ दो अन्य मंत्रियों ने आज (18 सितंबर को) विधान परिषद की सदस्यता की शपथ ली। यह लगातार तीसरी बार है जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बहुमत होते हुए पिछले दरवाजे से यानी बिना चुनाव लड़े विधान मंडल दल के सदस्य बने हैं। इनसे पहले साल 2007 में स्पष्ट बहुमत के बावजूद मायावती ने भी विधान परिषद की सदस्यता ली थी और पांच वर्षों तक राज्य की मुख्यमंत्री रहीं। उनके बाद मार्च 2012 में मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव ने भी बहुमत होने के बावजूद विधान परिषद की सदस्यता ली। यह तीसरी बार है, जब 10 सालों के इतिहास को दोहराते हुए योगी आदित्यनाथ भी पिछले दरवाजे वाला सीएम बन गए हैं।
यानी सपा-बसपा का विरोध कर सत्ता में काबिज हुई भाजपा ने भी सपा-बसपा की ही पुरानी राह अपनाई है। हालांकि, इस बार भारतीय जनता पार्टी को 404 सदस्यों वाले विधानसभा में 312 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला था। बावजूद इसके योगी आदित्यनाथ ने बैकडोर का सहारा लिया। उनके अलावा उनके दोनों उप मुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा समेत दो अन्य मंत्रियों परिवहन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वतंत्र देव सिंह और अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मोहसिन रजा भी विधान परिषद के सदस्य बने हैं।
इन पांचों के लिए विधान मंडल का सदस्य बनने की आखिरी तारीख 19 सितंबर थी क्योंकि इन सबों ने 19 मार्च को यूपी की नई सरकार में शपथ ग्रहण किया था। नियमानुसार जो लोग किसी सदन के सदस्य नहीं होते हैं, उन्हें शपथ लेने के 6 महीने के अंदर राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य बनना होता है। योगी आदित्यनाथ इससे पहले गोरखपुर से सांसद थे जबकि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर संसदीय सीट से लोकसभा सांसद थे। दूसरे उप मुख्मंत्री दिनेश शर्मा लखनऊ के मेयर थे। बाकी दोनों मंत्री भी किसी सदन के सदस्य नहीं थे।
बता दें कि यूपी विधान परिषद यानि उच्च सदन की जिन पांच सीटों पर उपचुनाव हुए और इनकी जीत हुई, उनमें से चार समाजवादी पार्टी के सदस्यों बुक्कल नवाब, यशवंत सिंह, सरोजिनी अग्रवाल और अशोक बाजपेयी तथा एक बसपा सदस्य ठाकुर जयवीर सिंह के इस्तीफे के चलते खाली हुई थीं। ये सभी नेता अपने पद से त्याग पत्र देने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे, जिसको लेकर विपक्षी दलों ने भाजपा की काफी आलोचना की थी।