लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस-सपा-बसपा में ‘रणनीतिक गठजोड़’, मकसद- किसी भी तरह BJP को हराना
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले अहम सियासी घटनाक्रम में महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच डील फाइनल हो गई है। सूत्रों के मुताबिक ये दल एक ‘रणनीतिक समझ’ पर पहुंच गये हैं, जिसके तहत ये दल साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस के सूत्रों ने शुक्रवार (3 अगस्त) को कहा कि इस बात पर सभी दलों में एक राय है कि सबका मकसद बीजेपी को हराना है। ये दल ये भी मानते हैं कि महागठबंधन का पीएम उम्मीदवार पर फैसला चुनाव नतीजों के बाद प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा। हालांकि कांग्रेस ने शिवसेना के साथ किसी तरह के गठबंधन से इनकार किया है, शिवसेना इन दिनों बीजेपी से खफा चल रही है। कांग्रेस का कहना है कि शिवसेना की विचारधारा किसी भी तरह से कांग्रेस से नहीं मिलती है। कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दलों, जैसे आप के गठबंधन का मामला अभी अटका हुआ है। सूत्रों ने कहा कि कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ आप का सीधा मुकाबला है, जैसे पंजाब में आप के साथ तो तेलंगाना में टीआरएस के साथ। पार्टी का कहना है कि इस मुद्दे पर समझौता करने से पहले पार्टी के राज्यस्तरीय नेताओं की राय को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि अभी सबसे बड़ा काम सभी विपक्षी पार्टियों को बिना किसी मतभेद या संदेह के एक प्लेटफॉर्म पर लाना है, इसके बाद क्यो होता है ये इसपर तय करेगा कि पार्टियां कैसा परफॉर्म करती हैं। कांग्रेस का मानना है कि चुनाव के बाद के हालात पर अभी से चर्चा करना विपक्षी एकता के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस का सबसे बड़ा फोकस उत्तर प्रदेश और बिहार है। कांग्रेस के एक सूत्र के मुताबिक, “उत्तर प्रदेश में गठबंधन के लिए सपा, बसपा एवं अन्य भाजपा विरोधी दलों के बीच भी ‘रणनीतिक समझ’ बन गई है, अब सीटों के बंटवारे पर बात चल रही है।” सूत्र ने दावा किया कि अगर उत्तर प्रदेश, और बिहार ‘सही से’ गठबंधन हो गया तो भाजपा को 5 से ज्यादा सीटें नहीं मिलने वाली है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा, बसपा और रालोद के बीच महागठबंधन बनाने को लेकर लंबे समय से बातचीत चल रही थी। कांग्रेस के एक सूत्र ने कहा कि महाराष्ट्र में एनसीपी से गठबंधन सालों पुराना है। पार्टी के मुताबिक ये सिर्फ बनी-बनाई बात है कि बीजेपी और आरएसएस को मात नहीं दिया जा सकता है, 2004 के चुनावी नतीजे इसका उदाहरण थे।