लोहिया को ठेंगा

नीतीश कुमार जो चाहते थे वही कर लिया। शरद यादव को अपनी पार्टी जनता दल (एकी) में दरकिनार कर दिया। शरद यादव के कद का दूसरा कोई नेता था ही नहीं। लिहाजा अब पार्टी पूरी तरह नीतीश की मुट्ठी में है। पार्टी को जैसे चाहें चला सकते हैं। किसी की चूं करने की भी मजाल नहीं होगी। यों वरिष्ठ नेता और भी कई हैं। पर अब तो सब बौने हो गए हैं। अगर नीतीश का संकेत नहीं समझेंगे तो न जाने किस गति को प्राप्त हो जाएं। एक तरह से लालू यादव का अनुसरण किया है नीतीश ने। राजद भी तो पूरी तरह लालू की मुट्ठी में है। बस फर्क इतना है कि लालू यादव ने शुरू से ही अपनी पार्टी अपनी मर्जी से बनाई थी। पर नीतीश के साथ वैसा नहीं है। पहले समता पार्टी थी। जिसके कद्दावर नेता जार्ज फर्नांडीज थे।

शरद यादव की पार्टी जद (एकी) थी। नीतीश ने समता पार्टी का उसी में विलय कर दिया था। हालांकि बंटवारे पर विवाद भी हुआ और जया जेटली खुद को समता पार्टी का नेता मानती रहीं। अब नीतीश यह दिखाना चाह रहे हैं कि वे भाजपा के दबाव में नहीं हैं। भाजपा ने उनसे संपर्क साधा और मदद की पेशकश की। भाजपा को भी तो सत्ता में हिस्सेदारी का लालच था। साथ ही पार्टी की सत्ता वाले सूबों की संख्या बढ़ाने का मकसद अलग। हां, लालू से नीतीश भी मुक्ति चाह रहे थे। सो, भाजपा शरणम गच्छामि। इसके बाद शरद यादव ने खुद ही किनारा कर लिया उनसे। उनके पास और कोई चारा था भी नहीं। नीतीश के साथ रहते तो पहले से ज्यादा फजीहत कराते। नीतीश की चाल को भांप नहीं पाए। पार्टी अध्यक्ष का पद तो नीतीश ने उनसे पहले ही झटक लिया था। लालू का चाहे जितना विरोध कर रहे हों नीतीश, पर पार्टी को मुट्ठी में रखने का तरीका तो उन्हीं से सीखा है।

 

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